SANSKRITI PURUSH GURUDEV
Price: ₹ 24/-



Product Detail

Author Brahmavarchasva
Dimensions 12X18 cm
Language Hindi
PageLength 128
Preface देवसंस्कृति का पुण्य-प्रवाह इन दिनों सारे विश्व को आप्लावित कर रहा है । सभी को लगता है कि यदि कहीं कोई समाधान आज के उपभोक्ता प्रधान युग में जन्मी समस्याओं का है, तो वह मात्र एक ही है-संवेदना मूलक संस्कृति-भारतीय संस्कृति के दिग-दिगन्त तक विस्तार में । यह संस्कृति देवत्व का विस्तार करती रही है, इसीलिए इसे देव संस्कृति कहा गया । इस संस्कृति को एक महामानव ने अपने जीवन में जिया-हर सास में उसे धारण कर जन-जन के समक्ष एक नमूने के रूप में प्रस्तुत किया । वह महापुरुष थे-परम पूज्य गुरुदेव पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी । गायत्री परिवार के संस्थापक-अधिष्ठाता-युग की दिशा को एक नया मोड़ देने वाले इस प्रज्ञा पुरुष का जीवन बहुआयामी रहा है । उनने न केवल एक संत-मनीषी-ज्ञानी का जीवन जिया, स्नेह संवेदना की प्रतिमूर्त्ति बनकर एक विराट परिवार का संगठन कर उसके अभिभावक भी वे बने । आज के इस भौतिकता प्रधान युग में यदि कहीं कोई शंखनिनाद-घडियाल के स्वर, मंत्रों की ऋचाएँ-यज्ञ धूम्र के साथ उठते समवेत सामगान सुनाई पड़ते हैं, लोगों को अंधेरे में भी कहीं पूर्व की सूर्योदय की उषा लालिमा दिखाई पड़ रही है, तो उसके मूल में हमारे संस्कृति पुरुष ही हैं ।
Publication Yug Nirman Yogana, Mathura
Publisher Yug Nirman Yogana, Mathura
Size normal
TOC 1. संस्कृति पुरुष परम पूज्य गुरुदेव 2. देव पुरुष का अवतरण 3. संस्कृति के पुण्य प्रवाह को मिला नवजीवन 4. उपनयन संस्कारों ने जगाई साधक की अभीप्सा 5. गुरुरेव परब्रह्म 6. पूर्वजन्मों की अनुभूति ने कराया आत्मबोध 7. वेदमाता उनकी चेतना में अवतरित हुईं 8. श्रद्धा हुई प्रगाढ़ तीन पावन प्रतीकों से 9. गृहस्थ ही बना एक तपोवन 10. देवात्मा हिमालय था उनका अभिभावक 11. यज्ञमय जीवन से उमगती तप की च्चालाएँ 12. पुरुषार्थ चतुष्टय के थे वे साकार भाव विग्रह 13. उन्होंने सुनी आर्ष साहित्य की पुकार 14. गुह्य विद्या और भारतीय विज्ञान का उद्धार 15. संस्कारों के माध्यम से संस्कृति की प्रतिष्ठा 16. वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिता 17. तीर्थ-चेतना के उन्नायक 18. लोक-शिक्षण करने वाले परिष्कृत धर्मतंत्र के संस्थापक 19. जीवन-साधना का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष "आत्मवत् सर्वभूतेषु" 20. उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् 21. लोकनायक-निर्माण की परंपरा का नवोन्मेष 22. पर्वो को दी चैतन्यता एवं सुसंस्कारिता 23. ऋषि-परंपराओं को नवजीवन दिया युगऋषि ने 24. विज्ञान व अध्यात्म के समन्वय ने दिया संस्कृति को नया मोड़ 25. सांस्कृतिक संवेदना को मिला मूर्त रूप 26. सांस्कृतिक क्रांति के अग्रदूत 27. नवयुग में संस्कृति पुरुष की चेतना का नवोदय 28. संस्कृति पुरुष की वसीयत और विरासत



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