PARMATMA KI SARVOTKRIST KRATI NARI
Price: ₹ 12/-



Product Detail

Author Pt. Shriram Sharma Aacharya
Dimensions 12 X 18 cm
Language Hindi
PageLength 48
Preface इस सृष्टि के कर्त्ता की सर्वोत्तम कलाकृति नारी है ।। उसे अन्य जीवधारियों की तरह जीवित रह सकने योग्य सामग्रियों से ही नहीं, विशिष्ट भाव संवेदनाओं के साथ गढ़ा गया है ।। उसकी इसी विशेषता ने इस सृष्टि की भौतिक शोभा में दिव्य सौंदर्य एवं असीम उल्लास भर दिया है ।। नारी की विशिष्ट भाव संपदा से ही अभिभूत होकर भारतीय संस्कृति ने उसे जगन्माता के गरिमामय पद पर अधिष्ठित कर उसे बार- बार नमन किया है या देवी सर्व भूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता ।। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।। नारी को मात्र भोग- विलास की वस्तु न समझकर उसकी भाव संपदा का समुचित आदर किया जाना, उसके प्रति श्रद्धा का भाव रखना आज की महती आवश्यकता है ।। उसके प्रति किए गए अन्यायों के प्रतिकार के लिए नर को ही आगे आना पड़ेगा और उसके उत्थान हेतु हर संभव प्रयास करना होगा ।। नारी भी अपनी दीर्घकालीन प्रसुप्ति से जागकर अपने मूल स्वरूप को पहचाने, अपने विकास के लिए स्वयं प्रयत्नशील हो और जगत के कल्याण के लिए, जिस निमित्त उसकी सृष्टि हुई है, अपनी भाव संपदा का उन्मुक्त भाव से वितरण करे ।। इसी में नर और नारी दोनों का ही हित सन्निहित है और संसार की सुख, शांति और अभ्युत्थान भी ।। ऐसे ही प्रेरक भावों से परिपूर्ण एवं दिशा दर्शक कुछ अवतरण इस पुस्तक में संकलित किए गए हैं ।। दोनों ही पक्ष - नर और नारी - संकलित अवतरणों में व्यक्त विचारों पर चिंतन- मनन करते हुए अपने अपने कर्तव्य निर्धारण में सफल हो सकें, इसी में इस छोटी सी पुस्तक के प्रकाशन की सार्थकता है ।।
Publication Yug Nirman Yojna Trust, Mathura
Size normal
TOC 1. परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति नारी 2. नारी सृष्टा की जीवन्त कलाकृति 3. नारी-उत्कृष्टता की जीवन्त प्रतिमा 4. नारी-देवत्व की मूर्तिमान प्रतिमा 5. नारी मूर्तिमान उत्कृष्टता है 6. कला और करुणा की जीवन्त प्रतिमा नारी 7. वरिष्ठता में नारी का पलड़ा भारी है 8. आस्था मूलक नारी जीवन 9. नारी कामधेनु है, कल्पवृक्ष है 10. नर नारी के बीच महान सद्भावना 11. पिछड़ापन अकुलाहट के बिना हटेगा नहीं 12. नारी को मात्र न्याय चाहिए और कुछ नहीं 13. नारी के साथ अदूरदर्शी नीति न बरती जाय 14. समुन्नत परिवार सुसंस्कृत नारी ही बना सकेगी 15. ससुराल में नारी को अतिथि सत्कार प्राप्त हो 16. न्याय युग की वापसी और नारी की समर्थता 17. जागृत महिला परिवार-मंदिर की अधिष्ठात्री देवी 18. नारी पारिवारिकता की प्रतिमूर्ति 19. सहकारिता का संवर्धन-पारिवारिक वातावरण में 20. उठने की उत्कट अभिलाषा जगाये 21. नीति प्रतिष्ठा का आग्रह भी तो उभरे 22. अपहरण की नहीं अनुदान की नीति अपनाए 23. उपेक्षा के रहते उपयोगिता संभव नहीं 24. मनुष्य में देवत्व के अवतरण का लक्षण 25. सहयोग और सद्भाव की रीति ही श्रेयस्कर है 26. नारी देवत्व की जीवन्त प्रतिमा 27. नारी श्रद्धा और श्रेष्ठता की अधिष्ठात्री 28. नारी इस धरती का श्रेष्ठतम सारतत्व 29. नर और नारी की एकात्मता 30. दुर्गति से परित्राण के लिए स्वत: का प्रयास आवश्यक है 31. अनीति को स्वीकार तो नहीं ही किया जाता है 32. शिक्षित महिलाएँ अहंकार का त्याग करें 33. भारत में आदर्श नारी की शानदार परम्परा 34. नारी की सच्ची श्रृंगारिकता



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