YUG KI MANG PRATIBHA PARISHKAR -1
Price: ₹ 15/-



Product Detail

TOC 1 शिक्षा ही नहीं विद्या भी 2 भाव संवेदनाओं की गंगोत्री 3 संजीवनी विद्या का विस्तार 4 आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना 5 जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र 6 इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण 7 महिला जागृति अभियान 8 इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग १ 9 इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग २ 10 सतयुग की वापसी 11 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग २ 12 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग १ 13 परिवर्तन के महान क्षण 14 महाकाल का प्रतिभाओं को आमंत्रण 15 प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया 16 नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी 17 समस्याएँ आज की समाधान कल के 18 मन: स्थिति बदले तो परिस्थिति बदले 19 स्रष्टा का परम प्रसाद-प्रखर प्रज्ञा 20 जीवन देवता की साधना-आराधना 21 समयदान ही युग धर्म 22 नवयुग का मत्स्यावतार
Author Pandit Shriram Sharma Aacharya
Descriptoin क्रान्तिधर्मी साहित्य-युग साहित्य नाम से विख्यात यह पुस्तकमाला युगद्रष्टा-युगसृजेता प्रज्ञापुरुष पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा १९८९-९० में महाप्रयाण के एक वर्ष पूर्व की अवधि में एक ही प्रवाह में लिखी गयी है। प्राय: २० छोटी -छोटी पुस्तिकाओं में प्रस्तुत इस साहित्य के विषय में स्वयं हमारे आराध्य प.पू. गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना था- ‘‘हमारे विचार, क्रान्ति के बीज हैं। ये थोड़े भी दुनियाँ में फैल गए, तो अगले दिनों धमाका कर देंगे। सारे विश्व का नक्शा बदल देंगे।..... मेरे अभी तक के सारे साहित्य का सार हैं।..... सारे जीवन का लेखा-जोखा हैं।..... जीवन और चिंतन को बदलने के सूत्र हैं इनमें।..... हमारे उत्तराधिकारियों के लिए वसीयत हैं।..... अभी तक का साहित्य पढ़ पाओ या न पढ़ पाओ, इसे जरूर पढ़ना। इन्हें समझे बिना भगवान के इस मिशन को न तो तुम समझ सकते हो, न ही किसी को समझा सकते हो।..... प्रत्येक कार्यकर्ता को नियमित रूप से इसे पढ़ना और जीवन में उतारना युग-निर्माण के लिए जरूरी है। तभी अगले चरण में वे प्रवेश कर सकेंगे। ..... यह इस युग की गीता है। एक बार पढ़ने से न समझ आए तो सौ बार पढ़ना और सौ लोगों को पढ़ाना। उनसे भी कहना कि आगे वे १०० लोगों को पढ़ाएँ। हम लिखें तो असर न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। जैसे अर्जुन का मोह गीता से भंग हुआ था, वैसे ही तुम्हारा मोह इस युग-गीता से भंग होगा।..... मेरे जीवन भर के साहित्य इस शरीर के वजन से भी ज्यादा भारी है। मेरे जीवन भर के साहित्य को तराजू के एक पलड़े पर रखें और क्रान्तिधर्मी साहित्य को दूसरे पलड़े पर, तो इनका वजन ज्यादा होगा।..... महाकाल ने स्वयं मेरी उँगलियाँ पकड़कर ये साहित्य लिखवाया है।
Dimensions 121mmX181mmX3mm
Edition 2011
Language Hindi
PageLength 56
Preface भगवत्सत्ता का निकटतम और सुनिश्चित स्थान एक ही है, अंतराल में विद्यमान प्राणाग्नि। उसी को जानने- उभारने से वह सब कुछ मिल सकता है, जिसे धारण करने की क्षमता मनुष्य के पास है। प्राणवान् प्रतिभा संपन्नों में उस प्राणाग्नि का अनुपात सामान्यों से अधिक होता है। उसी को आत्मबल- संकल्पबल भी कहा गया है। पारस को छूकर लोहा सोना बनता भी है या नहीं ? इसमें किसी को संदेह हो सकता है, पर यह सुनिश्चित है कि महाप्रतापी- आत्मबल संपन्न व्यक्ति असंख्यों को अपना अनुयायी- सहयोगी बना लेते हैं। इन्हीं प्रतिभावानों ने सदा से जमाने को बदला है- परिवर्तन की पृष्ठभूमि बनाई है। प्रतिभा किसी पर आसमान से नहीं बरसती, वह तो अंदर से जागती है। सवर्णों को छोड़कर वह कबीर और रैदास को भी वरण कर सकती है। बलवानों, सुंदरों को छोड़कर गाँधी जैसे कमजोर शरीर वाले व चाणक्य जैसे कुरूपों का वरण करती है। जिस किसी में वह जाग जाती है, साहसिकता और सुव्यवस्था के दो गुणों में जिस किसी को भी अभ्यस्त- अनुशासित कर लिया जाता है, सर्वतोमुखी प्रगति का द्वार खुल जाता है। प्रतिभा- परिष्कार -तेजस्विता का निखार आज की अपरिहार्य आवश्यकता है एवं इसी आधार पर नवयुग की आधारशिला रखी जाएगी।
Publication Yug Nirman Yogana Vistar Trust, Mathura
Publisher Yug Nirman Yogana, Mathura
Size normal
TOC 1. प्राणवान् प्रतिभाओं की खोज 2. विशिष्टता का नए सिरे से उभार 3. प्रतिभा परिवर्धन के तथ्य और सिद्धांत 4. युगसृजन के निमित्त प्रतिभाओं को चुनौती 5. प्रतिभा संवर्धन का मूल्य भी चुकाया जाए 6. प्रतिभा के बीजांकुर हर किसी में विद्यमान हैं 7. बड़े कामों के लिए वरिष्ठ प्रतिभाएँ 8. उत्कृष्टता के साथ जुड़ें, प्रतिभा के अनुदान पाएँ



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