IKKISAVI SADI UJJVAL BHAVISHYA -1
Price: ₹ 17/-



Product Detail

Author Pandit Shriram Sharma Aacharya
Descriptoin क्रान्तिधर्मी साहित्य-युग साहित्य नाम से विख्यात यह पुस्तकमाला युगद्रष्टा-युगसृजेता प्रज्ञापुरुष पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा १९८९-९० में महाप्रयाण के एक वर्ष पूर्व की अवधि में एक ही प्रवाह में लिखी गयी है। प्राय: २० छोटी -छोटी पुस्तिकाओं में प्रस्तुत इस साहित्य के विषय में स्वयं हमारे आराध्य प.पू. गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना था- ‘‘हमारे विचार, क्रान्ति के बीज हैं। ये थोड़े भी दुनियाँ में फैल गए, तो अगले दिनों धमाका कर देंगे। सारे विश्व का नक्शा बदल देंगे।..... मेरे अभी तक के सारे साहित्य का सार हैं।..... सारे जीवन का लेखा-जोखा हैं।..... जीवन और चिंतन को बदलने के सूत्र हैं इनमें।..... हमारे उत्तराधिकारियों के लिए वसीयत हैं।..... अभी तक का साहित्य पढ़ पाओ या न पढ़ पाओ, इसे जरूर पढ़ना। इन्हें समझे बिना भगवान के इस मिशन को न तो तुम समझ सकते हो, न ही किसी को समझा सकते हो।..... प्रत्येक कार्यकर्ता को नियमित रूप से इसे पढ़ना और जीवन में उतारना युग-निर्माण के लिए जरूरी है। तभी अगले चरण में वे प्रवेश कर सकेंगे। ..... यह इस युग की गीता है। एक बार पढ़ने से न समझ आए तो सौ बार पढ़ना और सौ लोगों को पढ़ाना। उनसे भी कहना कि आगे वे १०० लोगों को पढ़ाएँ। हम लिखें तो असर न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। जैसे अर्जुन का मोह गीता से भंग हुआ था, वैसे ही तुम्हारा मोह इस युग-गीता से भंग होगा।..... मेरे जीवन भर के साहित्य इस शरीर के वजन से भी ज्यादा भारी है। मेरे जीवन भर के साहित्य को तराजू के एक पलड़े पर रखें और क्रान्तिधर्मी साहित्य को दूसरे पलड़े पर, तो इनका वजन ज्यादा होगा।..... महाकाल ने स्वयं मेरी उँगलियाँ पकड़कर ये साहित्य लिखवाया है।
Dimensions 121mmX181mmX3mm
Edition 2013
Language Hindi
PageLength 56
Preface पिछले दिनों बढ़े विज्ञान और बुद्धिवाद ने मनुष्य के लिये अनेक असाधारण सुविधाएँ प्रदान की हैं, किन्तु सुविधाएँ बढ़ाने के उत्साह में हुए इनके अमर्यादित उपयोगों की प्रतिक्रियाओं ने ऐसे संकट खड़े कर दिए हैं, जिनका समाधान न निकला, तो सर्वविनाश प्रत्यक्ष जैसा दिखाई पड़ता है। इस सृष्टि का कोई नियंता भी है। उसने अपनी समग्र कलाकारिता बटोर कर इस धरती को और उसकी व्यवस्था के लिए मनुष्य को बनाया है। वह इसका विनाश होते देख नहीं सकता। नियंता ने सामयिक निर्णय लिया है कि विनाश को निरस्त करके संतुलन की पुन: स्थापना की जाए। सन् १९८९ से २००० तक युग सन्धिकाल माना गया है। सभी भविष्यवक्ता, दिव्यदर्शी इसे स्वीकार करते हैं। इस अवधि में हर विचारशील, भावनाशील, प्रतिभावान को ऐसी भूमिका निभाने के लिये तैयार- तत्पर होना है, जिससे वे असाधारण श्रेय सौभाग्य के अधिकारी बन सकें।
Publication Yug Nirman Yogana Vistar Trust, Mathura
Publisher Yug Nirman Yogana, Mathura
Size normal
TOC 1. किंकर्तव्य विमूढ़ता जैसी परिस्थितियाँ 2. स्थिति निश्चित ही विस्फोटक 3. बढ़ती आबादी, बढ़ते संकट 4. हर ओर बेचैनी, व्याधियाँ एवं उद्विग्नता 5. वास्तविकता, जिसे कैसे नकारा जाए? 6. सदुपयोग बन पड़े, तो परिवर्तन संभव 7. सदुपयोग बनाम दुरुपयोग 8. सुनियोजन की सही परिणति 9. समाधान इस प्रकार भी संभव था 10. निराशा में आशा की झलक 11. क्रिया बदलेगी, तो प्रतिक्रिया भी बदलेगी 12. तेजी से बदलता परोक्ष जगत का प्रवाह 13. संतुलन नियंता की व्यवस्था का एक क्रम 14. इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य 15. व्यापक परिवर्तनों से भरा संधिकाल 16. युग परिवर्तन का यही समय क्यों? 17. अंत:स्फुरणा बनाम भविष्य बोध 18. वैज्ञानिक शोधें भी पूर्वाभास से उपजीं 19. इक्कीसवीं सदी एवं भविष्यवेत्ताओं के अभिमत 20. धर्मग्रंथों में वर्णित भविष्य कथन 21. उज्ज्वल भविष्य की संरचना हेतु संकल्पित प्रयास 22. विचारक्रांति का एक छोटा मॉडल 23. प्रामाणिक तंत्र का विकास
TOC 1 शिक्षा ही नहीं विद्या भी 2 भाव संवेदनाओं की गंगोत्री 3 संजीवनी विद्या का विस्तार 4 आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना 5 जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र 6 इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण 7 महिला जागृति अभियान 8 इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग १ 9 इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग २ 10 सतयुग की वापसी 11 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग २ 12 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग १ 13 परिवर्तन के महान क्षण 14 महाकाल का प्रतिभाओं को आमंत्रण 15 प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया 16 नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी 17 समस्याएँ आज की समाधान कल के 18 मन: स्थिति बदले तो परिस्थिति बदले 19 स्रष्टा का परम प्रसाद-प्रखर प्रज्ञा 20 जीवन देवता की साधना-आराधना 21 समयदान ही युग धर्म 22 नवयुग का मत्स्यावतार



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