PARMARTH AUR SWARTH
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Preface गायत्री मंत्र का तेरहवाँ अक्षर स्य हमको स्वार्थ और परमार्थ के वास्तविक स्वरूप की शिक्षा देता है ।। स्यंदनं परमार्थस्य परार्थी बुधैमर्त: ।। योऽन्यान सुखयते विद्वान् तस्य दुखं विनश्यति ।। अर्थात् लोक हित में ही अपना परम स्वार्थ निहित है ।। जो दूसरों के सुखों का आयोजन करता है उसके दुःख स्वयं ही नष्ट हो जाते हैं ।। संसार में हम अधिकांश मनुष्यों को तीन प्राकर से व्यवहार करते देखते हैं ।। ( १) अनर्थ- दूसरों को हानि पहुँचा कर भी अपना मतलब सिद्ध करना ( २) स्वार्थ- व्यापारिक दृष्टि से दोनों ओर के स्वार्थ का सम्मिलन ( ३) परमार्थ- अपनी कुछ हानि सहकर भी दूसरे लोगों का साधारण जनता का हित साधन करना ।। इनमें से परमार्थ को यद्यपि लोग स्वार्थ से भिन्न समझा करते हैं पर गुड़ दृष्टि से विचार करने पर परमार्थ में ही अपना परम स्वार्थ समाया जान पड़ता है ।। जो व्यक्ति अनर्थ मूलक स्वार्थ में प्रवृत्त हैं अर्थात् दूसरों का अनिष्ट करके लाभ करते हैं वे असुर कहलाते हैं ।। जो लोग दूसरों को बिना हानि पहुँचाये केवल अपने स्वार्थ पर दृष्टि रखते हैं वे पशुत्व की प्रवृत्ति वाले समझे जा सकते हैं और जो मनुष्य दूसरों के हित का स्थान रखते हैं और आवश्यकता पड़ने पर इसके लिए न्यूनाधिक अंशों में अपने स्वार्थ का त्याग भी कर देते हैं, वे ही मनुष्य कहलाने के अधिकारी हैं ।। ऐसे व्यक्तियों को हम देवता भी कह सकते हैं ।।
Publication Yug nirman yojana press
Publisher Yug Nirman Yojana Vistara Trust
Size normal
TOC 1. परमार्थ और स्वार्थ का समन्वय 2. स्वार्थ के दो स्वरूप 3. परमार्थ द्वारा आत्मोन्नति 4. परमार्थ और सेवा-साधना 5. परमार्थ ही सच्चा वैराग्य है 6. परमार्थ सबसे प्रेम भाव रखता है 7. स्वार्थ-त्याग में आनन्द 8. परमार्थ का मार्ग और उसके सहायक 9. परमार्थ और स्वार्थ की एकता
TOC 1 ईश्वर का विराट रुप 2 ब्रह्मज्ञान का प्रकाश 3 शक्ति का सदुपयोग 4 धन का सदुपयोग 5 आपत्तियों में धैर्य 6 नारी की महानता 7 गृहलक्ष्मी की प्रतिष्ठा 8 प्रकृति का अनुसरण 9 मानसिक संतुलन 10 सहयोग और सहिष्णुता 11 इंद्रिय संयम 12 परमार्थ और स्वार्थ का समन्वय 13 सर्वतोमुखी उन्नति 14 ईश्वरीय न्याय 15 विवेक की कसौटी 16 जीवन और मृत्यु 17 धर्म की सुदृढ़ धारणा 18 उदारता और दूरदर्शिता 19 स्वाध्याय और सत्संग 20 आत्म ज्ञान और आत्म कल्याण 21 पवित्र जीवन 22 प्राणघातक व्यसन 23 सावधानी और सुरक्षा 24 संतान के प्रति कर्तव्य 25 शिष्टाचार और सहयोग
Author Pt.Shriram sharma acharya
Dimensions 12 cm x 18 cm
Language Hindi
PageLength 24



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