Preface
मनुष्य जीवन का अमूल्य यात्रा-पथ :- मनुष्य परमात्मा की अलौकिक कृति है । वह विश्वम्भर परमात्म देव की महान रचना है । जीवात्मा अपनी यात्रा का अधिकांश भाग मनुष्य शरीर में ही पूरा करता है । अन्य योनियों से इसमें उसे सुविधाएं भी अधिक मिली हुई होती हैं । यह जीवन अत्यंत सुविधाजनक है । सारी सुविधाएं और अनन्त शक्तियां यहां आकर केन्द्रित हो गई हैं ताकि मनुष्य को यह शिकायत न रहे कि परमात्माने उसे किसी प्रकार की सुविधा और सावधानी से वंचित रखा है । ऐसी अमूल्य मानव देह पाकर भी जो अंधकार में ही डूबता उतराता रहे उसे भाग्यहीन न कहें तो और क्या कहा जा सकता है ? आत्मज्ञान से विमुख होकर इस मनुष्य जीवन में भी जड़योनियों की तरह काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि की कैद में पड़े रहना सचमुच बड़े दुर्भाग्य की बात है । किंतु इतना होने पर भी मनुष्य को दोष देने का जी नहीं करता, बुराई में नहीं वह तो अपने स्वाभाविक रूप में सत्, चित् एवं आनंदमय ही है । शिशु के रूप में वह बिल्कुल अपनी इसी मूल प्रकृति को लेकर जन्म लेता है किंतु मातापिता की असावधानी, हानिकारक शिक्षा, बुरी संगति, विषैले वातावरण तथा दुर्दशाग्रस्त समाज की चपेट में आकर वह अपनेउद्देश्य से भटक जाता है । तुच्छ प्राणी का सा अविवेकपूर्ण जीवन व्यतीत करने लगता है ।
Table of content
1. जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
2. जीवन का लक्ष्य भी निर्धारित करें
3. मनुष्य जीवन का उद्देश्य भी समझें
4. जीवन लक्ष्य की ओर
5. हमारा जीवन लक्ष्य-आत्मदर्शन
6. शक्ति का स्त्रोत-आत्मा को मानिए
7. आनंद का मूल स्त्रोत अपने अंदर है
8. आंतरिक सुख ही वास्तविक सुख
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
40 |
Dimensions |
182mmX120mmX2mm |