Preface
बहुत से लोग जिंदगी को विविध उपकरणों से सजाए- सँवारे रहने को ही कला समझते हैं, किंतु बाह्य प्रसाधनों द्वारा जीवन का साज- शृंगार किए रहना कला नहीं है ।। यह मनुष्य की लिप्सा है, जिसे पूरा करने में उसे एक झूठे संतोष का आभास होता है ।। फलत: यह मान बैठता है कि वह जिंदगी को ठीक से जी रहा है ।। कला तो वास्तव में वह मानसिक वृत्ति है, जिसके आधार पर साधनों की कमी में भी जिंदगी को खूबसूरती के साथ जिया जा सकता है ।।
जिंदगी को हर समय हँसी- खुशी के साथ अग्रसर करते रहना ही कला है और उसे रो- झींककर काटना ही कलाहीनता है ।। जहाँ तक जिंदगी को कलापूर्ण बनाने में साधनों की सहायता का प्रश्न है- उसके विषय में बहुत बार देखा जा सकता है कि एक ओर जहाँ प्रचुर साधन- संपन्न अनेक लोग रों- रोकर जिंदगी काट रहे हैं, उनसे बात करने पर ऐसा लगता है मानो उनका जीवनतत्त्व समाप्त हो गया है और वे ऊबे हुए शेष श्वासों की लकीर पीट रहे हैं, जीवन से उन्हें अभिरुचि नहीं रह गई है ।। इस प्रकार की जिंदगी को आकुल अथवा अकलापूर्ण कहा जाएगा ।।
Table of content
1. जीवन कलात्मक ढ़ंग से जिएँ
2. जीवन इस तरह जिएँ
3. जटिल नहीं जीवन को सरल बनाइए
4. जिन्दगी को खेल की तरह जिएँ
5. धरती पर स्वर्ग प्राप्त कीजिए
6. कृत्रिमता से बचिए
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2015 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |