Preface
वाणी सरस्वती है- गंगा जैसी पावन और शीतल धारा बहाने वाली भी ।। देवता उसी के अग्र भाग पर विराजते हैं, उच्चारण में वही शब्द ब्रह्म है, वही नादब्रह्म के रूप में संगीत बनकर निनादित होती है ।। रसास्वादन के केंद्र अन्य भी हो सकते हैं, पर वाणी द्वारा की गई अमृत वर्षा से अधिक मंत्रमुग्ध कर देने वाली सरसता इस विश्व ब्रह्मांड में कहीं भी तो नहीं ।। वह बच्चों की तोतली बोली से लेकर ब्रह्मवक्ताओं के कायाकल्प करने वाले अनुदानों तक में अपने- अपने ढंग से अमृत वर्षा करती देखी जा सकती है, शाप और वरदान उसी के चमत्कार हैं ।।
अपने समय की सबसे बड़ी आवश्यकता जनमानस का परिष्कार है ।। इस महान सेवा कार्य में हर प्रतिभा को नियोजित किया जाना चाहिए ।। साहित्यकारों की लेखनी, चित्रकारों की तूलिका, गीतकारों की संवेदना और अभिनेताओं की कला यदि लोक चेतना को उत्कृष्टता के साथ जोड़ने वाला मार्ग अपना सके तो लोकमानस का कायाकल्प करने में कोई बड़ी अड़चन शेष न रहेगी, पर यदि इनमें अपनी गति न हो तो भी भावनाशीलता के सहारे इस दिशा में बहुत कुछ किया जा सकता है ।। वाणी की साधना करके, सत्परामर्श देकर वाणी का अमृत मूर्छित और विकृत मानस पर छिड़ककर उसे नव जीवन प्रदान किया जा सकता है ।।
जो सृजन साधक नवसृजन की दिशा में एक कदम बढ़ाने के लिए भी सहमत हों उन्हें अभीष्ट प्रयोजन के लिए अपनी वाणी को मुखर करना चाहिए ।। गूँगी गुड़िया न रहकर दहाड़ती हुई सिंहनी के रूप में वाणी को विकसित करना चाहिए ।। अमृत भरा पयपान कराने वाली कामधेनु भी तो यही है ।।
Table of content
1. वाणी के आधार पर आत्माभिव्यक्ति
2. मधुर वाणी में सन्निहित ऋद्धि-सिद्धि
3. सफल और सशक्त भाषण
4. आलोक का अनवरत विवरण
5. प्रयोग और अभ्यास
6. सफल वक्तृता की रहस्यमयी पृष्ठभूमि
7. युग संगीत से कोई क्षेत्र अछूता न रहे
8. प्रतिपादन की प्रभावोत्पादकता
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
48 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |