Preface
वातावरण में ही सम्पन्न कर लेता है ।। अच्छा होता इस स्तर का स्वभाव ही बन जाता और अभ्यास में उतर जाता, पर यदि ऐसा स्तर इसके पूर्व नहीं बन पड़ा है तो समय की आवश्यकता और कार्य की सुव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए उसे प्रयत्नपूर्वक अर्जित कर लेना चाहिए ।। स्मरण रहे कि बड़प्पन का रौब जमा कर जितना काम कराया जा सकता है उसकी तुलना में समता और सद्भाव का परिचय देकर कहीं अधिक और कहीं अच्छी तरह बात बनाई जा सकती है ।।
अनगढ़ व्यक्ति के लिए सिर्फ समय का दबाव ही प्रेरणा का स्त्रोत बन पड़ता है ।। वे उतना ही करते है जितना कि तात्कालिक आवश्यकता उन्हें बाधित करती है ।। ऐसी दशा में मानसिक विकास सीमा बद्ध हो जाता है ।। कुली, मजदूर उतना ही कर पाते हैं जितनी कि अनिवार्यता होती है ।। इसके आगे की, पीछे की सोच सकना और कार्य को अधिक सुरुचि रूप से सम्पन्न करने की आवश्यकता बनी रहती है उसके सम्बन्ध में उनका ध्यान ही नहीं जाता ।। ऐसी दशा में वह बन ही नहीं पड़ता जिसे देखकर सम्बन्धित व्यक्तियों को उसकी विशेषता का भान हो और बदले में सहानुभूति जन्य लाभ एवं गौरव प्राप्त हो ।। यथास्थिति बने रहने का प्रमुख कारण एक ही है कि विषय से संबंधित अन्य अनेकानेक बातों की ओर ध्यान न जाना एक सीमित परिधि में ही सोचते और करते रहना ।। यह मानसिकता किसी की भी उन्नति में बाधक हो सकती है और प्रबन्धक का स्तर प्राप्त करने की तो प्रमुख अड़चन समझी जाती है ।।
एक ही दृष्टि में तीक्ष्ण बुद्धि वाले लोग प्रस्तुत खामियों को खोज लेते हैं ।। उसके क्या कारण हो सकते हैं, इसकी कल्पना बिना समय गँवाये कर लेते हैं ।। साथ ही यह उपाय भी सूझता रहता है कि खामियों को किस प्रकार जल्दी से जल्दी और अच्छी तरह कितना जल्दी और सुविधा पूर्वक ठीक कराया जा सकता है ।।
Table of content
1. सुव्यवस्था और सुनियोजन
2. सामूहिक क्रिया - कलापों क संचालन
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |