Preface
नारी आज जिस स्थिति में रह रही है, उसे अच्छा नहीं समझा जा सकता, यह बात सभी स्वीकार करते हैं ।। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नारी की स्थिति और स्तर बदलने की आवाज इसीलिए उठाई जा रही है और हर समझदार व्यक्ति इसका समर्थन कर रहा है ।। फिर भी कुछ परंपरावादी यह आग्रह करते हैं कि नारी की वर्तमान स्थिति को बदला न जाए ।। इस संबंध में उनका तर्क यह होता है कि हमारे पूर्व पुरुष अधिक समझदार थे ।। उन्होंने जो नियम तथा मर्यादाएँ बनाई हैं उन्हें बदलना उनका अपमान करने जैसा है ।। कुछ की तो आस्था इस विषय में इतनी अधिक है कि इन रूढ़ियों को ही वे धर्म- मर्यादाएँ मानते हैं और उनमें सुधार करना उन्हें धर्म विरुद्ध लगता है ।।
ऐसा कहने वाले व्यक्ति यदि सचमुच पूर्वजों के प्रति सम्मान तथा धर्म के प्रति आस्था रखकर ऐसा करते हैं तो उनकी भावना का आदर किया जा सकता है ।। किंतु उनसे एक विनम्र निवेदन करना उचित लगता है- वह यह कि वे सही अर्थों में अपने पूर्वजों के आदर्श तथा धर्म का स्वरूप समझने के लिए कुछ सौ वर्ष की परंपराओं तक ही सीमित न रह जाएँ ।। भारत के उस गौरवमय अतीत का भी अध्ययन करें जब यह देश विश्व- गुरु का सम्मान पाए हुए था ।।
यहाँ एक बात और समझ लेनी चाहिए- वह है सिद्धांतों, आदर्शों तथा प्रथाओं- परंपराओं का अंतर ।। नैतिक आदर्शों तथा श्रेष्ठ सिद्धांतों को ही सनातन माना जाता है ।। आत्मसंयम, कर्त्तव्यपालन, लोकहित की भावना, जैसे उच्च आदर्शों को ही न बदले जाने योग्य धर्म- सिद्धांत कह सकते हैं ।। उन्हीं के पालन के लिए लोगों पर दबाव डालना उचित हो सकता है ।। खाने- पीने, उठने- बैठने जैसे मोटे नियम तो बराबर बदलते ही रहते हैं।
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2013 |
Publication |
Yug Nirman Yojna Trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojna Trust |
Page Length |
136 |
Dimensions |
12 X 18 cm |