Preface
पर्यावरण का संरक्षण मनुष्यजाति के लिए एक युगधर्म के समान है ।। जैसे जैसे- इस विधा पर गहन अनुसंधान होता चला जा रहा है, सभी इस निष्कर्ष पर पहुँच रहे हैं कि पर्यावरण मात्र स्थूल प्रकृति तक सीमित नहीं है ।। 'डीप इकालाजी' के प्रवर्त्तकों ने अब ऐसी धारणाएँ व्यक्त की हैं व सटीक वैज्ञानिक प्रतिपादन प्रस्तुत किए हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि यह प्रकृति समग्र इकोसिस्टम के रूप में एक विराट हृदय के समान धड़कती भी है - श्वास भी लेती है ।। समष्टि में व्यष्टिए रूपी घटक की तरह हम भी उसके अग हैं ।। यदि चैतन्यता के स्तर पर यह गहरा चिंतन किया जाए तो प्रकृति को पहुँचाई गई थोड़ी भी क्षति हमें- हमारे भविष्य की पीढ़ी के अंग- प्रत्यंगों को पहुँचाई गई क्षति है ।। सुप्रसिद्ध पुस्तक 'वेब ऑफ लाइफ' में फिट्जॉफ काप्रा जैसे नोबल पुरस्कार प्राप्त भौतिकविद् ने बड़ा विस्तृत वर्णन कर, मानवीय हृदय को- भाव संवेदनाओं को प्रकृति- पर्यावरण के साथ जोड़ उनका अविच्छिन्न संबंध स्थापित किया है ।।
परमपूज्य गुरुदेव 'माताभूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या:' के वेदसूक्त को परिभाषित करते हुए हर मानव के लिए पर्यावरण संरक्षण- वृक्षारोपण को एक परमपुनीत पुण्य बताते थे ।। आज की विभीषिका का कारण ही पूज्यवर ने वृक्षों की कटाई से लेकर- भू, जल, वायु, ध्वनि तथा हर क्षेत्र में हुए प्रदूषण को बताया है, जो कि आज के वैज्ञानिक प्रगति वाले युग द्वारा मानवजाति को विरासत में मिला अभिशाप है ।। इस पुस्तिका में परमपूज्य गुरुदेव के पर्यावरण के विषय में समय- समय पर व्यक्त विचारों को क्रमबद्ध कर जनचेतना को जगाने का एक तुच्छ प्रयास किया गया है ।।
Table of content
१. प्रदूषण का युग एवं पर्यावरण संवर्द्धन की अनिवार्यता
२. औद्योगीकरण की समस्या का समाधान
३. मृदा प्रदूषण! कैसे हो समाधान?
४. पर्यावरण अनुकूलन और गाय
५. कचरा और पर्यावरण
६. ऊर्जा और पर्यावरण
७. जनसंख्या वृद्धि और पर्यावरण
८. वृक्ष-वनस्पति और पर्यावरण
९. हमारे जीवन में वनों का महत्त्व
१०. जल प्रदूषण-कारण और निवारण
११. जीवन का पर्याय-जल
१२. स्वास्थ्य समस्या और पर्यावरण
१३. यज्ञ और पर्यावरण
१४. ध्वनि प्रदूषण और उसका समाधान
१५. अध्यात्म उपचार द्वारा पर्यावरण परिशोधन
१६. पर्यावरण संतुलन एवं शांतिकुंज की भूमिका
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug Nirman Yojna Trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojna Trust |
Page Length |
192 |
Dimensions |
12 X 18 cm |