Preface
उत्थान और पतन सृष्टि-प्रवाह के उलटते - पलटते पृष्ठ हैं । यद्यपि इसमें प्रधानता सृजन की ही है, पर बीच-बीच में पतन और पराभव का सामना भी करना पड़ता है । विश्व के इतिहास में ऐसी घड़ियाँ अनेक बार आई हैं, जब विनाश का तांडव अपनी पूरी गति से नृत्य करता रहा है । उस समय जन-जन सर्वनाश की आशंका से काँप रहा था । पर स्नष्टा अपनी कृति को इतने सहज में प्रलय के मुख में नहीं जाने दे सकता । यह समय एक चमत्कार जैसा होता है जिससे नाश के गर्त में गिरता हुआ संसार-गति में जरा सा परिवर्तन हो जाने से बच जाता है । उसी को दैव की अवतार-लीला कहा जाता है ।
Table of content
1. प्रज्ञावतार का स्वरूप और क्रिया-कलाप
2. वर्तमान युग की विभीषिका
3. विभीषिकाओं का उपचार-प्रज्ञावतार
4. प्रज्ञावतार का स्वरूप और कार्यपद्धति
5. जाग्रत आत्माओं की भूमिका
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug Nirman Yojna Trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojna Trust |
Page Length |
56 |
Dimensions |
12 X 18 cm |