Preface
आज की परिस्थितियों में सभी परिवर्तन चाहते हैं । अभावों के स्थान पर संपन्नता, अनिश्चितता के स्थान पर स्थिरता, आशंकाओं के स्थान पर आश्वासन अभीष्ट है । द्वेष का स्थान श्रद्धा को मिल-अविश्वास और आशंका की जड़ ही कट जयि । ऐसी मुखर परिस्थितियों की कल्पना करने भर से आँखें चमकने लगती हैं ।
उल्टे को उलटकर सीधा करें
सुविधा-साधनों की दृष्टि से हम पूर्वजों की तुलना में कही आगे हैं । विज्ञान और बुद्धिवाद की संयुक्त प्रगति ने अनेकानेक साधन ऐसे प्रस्तुत किये हैं, जिनकी सहायता से अपेक्षाकृत अधिक सुखी जीवन जी सकते है । पूर्वजों को शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन, संचार, यातायात, बिजली, तार, डाक, जहाज आदि अनेकों ऐसे सुविधा-साधन उपलब्ध नहीं थे, जैसे आज हैं । उन उपलब्धियों के आधार पर हमें अधिक सुखी होना चाहिए था, पर देखते हैं कि स्थिति और भी गई-गुजरी हो गई है । चिकित्सा और पौष्टिक खाद्यों की सुविधा वाले भी दिन-दिन दुर्बल और रुग्ण बनते जाते है । उच्च शिक्षित व्यक्ति भी संतुलन और विवेक से रहित चिंतन करते और विक्षुब्ध रहते देखे जाते हैं । गरीबों का उठाईगीरी करना समझ में आ सकता है, पर जो संपन्न है वे क्यों अन्याय-अपहरण की नीति अपनाते हैं, यह समझ सकना कठिन है ।
Table of content
१. उल्टे को उलटकर सीधा करें
२. नव निर्माण के लिए क्या करें ? कैसे करें ?
३. आधार-लोकशक्ति का जागरण
४. विचारक्राति के उपयुका साहित्य
५. लोकरंजन और लोकमंगल का समन्वय
६. श्रद्धा सद्भावना का संवर्धन-धर्मतंत्र के सहारे
७. नव निर्माण की पाँच प्रमुख संरचनाएँ
Author |
Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2012 |
Publication |
Yug Nirman Yojna Trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojna Trust, |
Page Length |
64 |
Dimensions |
12 X 18 cm |