Preface
अब से लगभग डेढ़ सौ वर्ष पहले रूस के एक लेखक ने, जो वास्तव में एक सामान्य किसान था, एक बड़े मार्के की बात लिखी थी- "मनुष्य को चाहिए कि वह अपना पसीना बहाकर उदर-पोषण करे ।"
यों सामान्य दृष्टि से देखने पर तो ये शब्द कोई विशेष महत्त्व के नहीं जान पड़ते । सैकड़ों लेखकों और सभी धर्मग्रंथों ने यह प्रतिपादित किया है कि मनुष्य को अपने श्रम की कमाई से ही अपना निर्वाह करना चाहिए । ईमानदारी का पैसा चाहे वह थोड़ा ही क्यों न हो, सच्ची सुख और शांति प्रदान करता है, फलने-फूलने का अवसर देता है । इसके विपरीत हराम की कमाई चाहे ऊपर से बड़ी आकर्षक, शान-शौकत बढ़ाने वाली दिखाई दे, पर वह अंतःकरण को खोखला कर देती है और एक दिन उसका उपभोक्ता धूल में मिलता दिखाई देता है ।
Table of content
1. मानसिक और बौद्धिक श्रम करने वाले
2. प्रकृति के प्रतिकूल सामाजिक पद्धति
3. जीवन की मूलभूत आवश्यकता
4. श्रम से बचने की हानिकारक मनोवृत्ति
5. समयाभाव का गलत बहाना
6. श्रम स्वयं एक वरदान है
7. ईश्वरीय नियमों का पालन कीजिए
Author |
Pt. Shriram Sharma Acharya |
Edition |
2013 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |