Preface
कुछ अपंग, अविकसित अपवादों को छोड़कर प्राय: सभी मनुष्य एक जैसी स्थिति में उत्पन्न होते हैं ।। आरोग्य से लेकर जीवन के अनेकानेक क्षेत्रों में दृढ़ता एवं प्रगति की सफलताएँ तो मनुष्य की अपनी गतिविधियों पर निर्भर रहती हैं ।। अपना आरोग्य यदि पिछड़ा या बिगड़ा हुआ है तो उसके लिए परिस्थितियों को दोष देते रहने से काम नहीं चलेगा ।। अपना उत्तरदायित्व स्वीकार करना पड़ेगा, कहीं अपने से ही भूल होती है या होती रही है, अपने पैर कल्हाडी मारने से ही यह जख्म हुआ है ।। ऐसा दूसरा कोई पास में दीखता नहीं जिसके कारण इतनी इमारत खोखली होती ।। आँख बंद किये रहें तो बात दूसरी है, अन्यथा पलक खोलकर देखने पर वस्तुस्थिति स्पष्ट हो जाती है और वह छिद्र स्पष्ट दीखता है, जिसमें होकर इस नाव में पानी भरा है और वह डूबने के करीब जा पहुँची है ।। अपनी ही बुरी आदतें है जिनसे घुन की तरह इस मजबूत शरीर को खोखला करके रख दिया है ।। यदि अपनी भूलें स्वास्थ्य की बर्बादी का कारण समझ में आ सके और उनका पश्चात्ताप हो तो प्रायश्चित एक ही है कि जो हो चुका है उसे सुधारने के लिए उतनी ही हिम्मत के साथ कदम बढ़ाए जाएँ जितने उत्साह से निराशा के पथ पर बढ़ने में उत्साह दिखाया गया है ।।
Table of content
1. शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्
2. धर्म साधन में शरीर रक्षा का महत्व
3. स्वाध्याय की उपेक्षा न करें
4. आरोग्य का मूल्य-महत्व समझें
5. गंभीर एवं महत्वपूर्ण समस्या
6. हनुमान जी की सच्ची उपासना
7. हम स्वास्थ्य और शक्ति की उपेक्षा न करें
8. स्वास्थ्य-सुधार के लिए धैर्य की आवश्यकता
9. उतावली न करें
10. आदतें सुधारें
Author |
Pt. Shriram Sharma Acharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
48 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |