Preface
गायत्री का बाईसवाँ अक्षर "चो" सत्संग और स्वाथाय के लाभों को
बतलाता है-
चोदयत्येव सत्संगो धियमस्य फलं महत ।
स्वमतो सज्जै विद्वान् कुर्यात पर्यावृतं सदा ।।
अर्थात-सत्संग से बृद्धि का विकास होता है इसलिये सदैव सत्पुरुषों का संग करे । सत्संग का फल महान् है ।
मनुष्य के मस्तिष्क पर वातावरण, स्थान, परिस्थिति और व्यक्तियों का निश्चित रुप से भारी प्रभाव पडता है । जो लोग अच्छाई की दिशा में अपनी उन्नति करना चाहते हैं उन्हें उचित है कि अपने को अच्छे
वातावरण में रखें, अच्छे लोगों को अपना मित्र बनावें उन्हीं से अपना व्यापार व्यवहार और सम्बन्ध रखें । जहाँ तक सम्भव हो परामर्श उपदेश और मार्ग-प्रदर्शन भी उन्हीं से प्राप्त करें ।
यथासाध्य अच्छे व्यक्तियों का सम्पर्क बढ़ाने के अतिरिक्त अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय भी ऐसा ही उपयोगी है । जिन जीवित या स्वर्गीय महापुरुषों से प्रत्यक्ष सत्संग सम्भव नहीं उनकी पुस्तकें पढ़कर सत्संग का लाभ उठाया जा सकता है । एकान्त में स्वयं भी अच्छे विचारों का चिन्तन और मनन करके तथा अपने मस्तिष्क को उसी दिशा में लगाये रहने से भी आत्म-सत्संग होता है । ये सभी प्रकार के सत्संग आत्मोन्नति के लिये आवश्यक हैं ।
Table of content
1. मनुष्य पर परिस्थितियों का प्रभाव
2. सत्संग की महिमा अपार है
3. स्वाध्याय भी सत्संग का ही एक रूप है
4. वास्तविक शिक्षा स्वाध्याय द्वारा ही प्राप्त होती है
5. सत्संग का मार्ग, और उसके लाभ
Author |
Pt. shriram sharma |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
24 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |