Preface
शिष्टाचार और सहयोग
गायत्री मंत्र का आठवाँ अक्षर "यम्" हमको सहयोग और शिष्टाचार की शिक्षा देता है-
य-यथेच्छति नरस्त्वन्यै: सदान्येभ्यस्तथा चरेत् ।
नम्र: शिष्ट: कृतज्ञश्च सत्य साहाय्यवान भवेत् ||
अर्थात "मनुष्य दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करे, जैसा अपने लिए दूसरों से चाहता है । उसे नम्र, शिष्ट, कृतज्ञ और सच्चाई तथा सहयोग की भावना वाला होना चाहिए ।
शिष्टता, सभ्यता, आदर-सम्मान और सहयोग की भावना मानव जीवन की सफलता के लिए आवश्यक बातें हैं । कौन नहीं चाहता कि दूसरे व्यक्ति उसके साथ नम्रता से बोलें, सभ्यतापूर्ण व्यवहार करें, आवश्यकता पड़ने पर उसकी सहायता करें और अगर उससे कोई भूल होजाए तो सहिष्णुता का परिचय दें । जब हम दूसरों से अपने प्रति उत्तम व्यवहार चाहते हैं तो हमारे लिए भी उचित है कि दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें । संसार में प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होने का नियम व्यापक रूप में काम कर रहा है । हम दूसरों के साथ जैसा व्यवहार करेंगे, उसका प्रभाव केवल उन्हीं पर नहीं अन्य अनेक लोगों पर भी पड़ेगा वे भी उसका अनुकरण करने का प्रयत्न करेंगे । इस प्रकार एक शृंखला भलाई या बुराई की चल पड़ती है और उसका वैसा ही प्रभाव जन-समाज पर पड़ता है ।
Table of content
1. सहयोग की आवश्यकता
2. सहयोग और सांसारिक उन्नति
3. सहयोग से मैत्री भावना का उदय
4. सहयोग और शिष्टाचार का संबंध
5. बातचीत करने की कला का महत्त्व
6. सच्ची और खरी बात कहिए, पर नम्रता के साथ
7. दूसरों से वार्तालाप करने के विशेष नियम
8. मिलने-जुलने का शिष्टाचार
9. शिष्टाचार के कुछ साधारण नियम
Author |
Pt. shriram sharma |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
24 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |