Preface
योग-साधना के दो मार्ग हैं- एक दक्षिण मार्ग, दूसरा वाम मार्ग । दक्षिण मार्ग का आधार यह है- "विश्वव्यापी ईश्वरीय शक्तियों को आध्यात्मिक चुंबकत्व से खींचकर अपने में धारण किया जाए सतोगुण को बढ़ाया जाए और अंतर्जगत में अवस्थित पंच कोश, सप्त प्राण, चेतना चतुष्टय, षटचक्र एवं अनेक उपचक्रों, मात्रिकाओं, ग्रंथियों, भ्रमरों, कमलों, उपत्यिकाओं को जाग्रत करके आनददायिनी अलौकिक शक्तियों का आविर्भाव किया जाए ।"
वाम मार्ग का आधार यह है- "दूसरे प्राणियों के शरीरों में निवास करने वाली शक्ति को इधर से उधर हस्तांतरित करके एक जगह विशेष मात्रा में शक्ति संचित कर ली जाए और उस शक्ति का मनमाना उपयोग किया जाए ।"
तांत्रिक साधनाओं की कार्यपद्धति इसी आधार पर चलती है । किन्हीं पशुओं का वध करके उनके पाँच प्राणों का उपयोगी भाग खींच लिया जाता है । जैसे शिकारी लोग सुअर के शरीर में निकलने वाली चरबी को अलग से निकाल लेते हैं, वैसे ही तंत्र साधक उस वध होते हुए पशु के सप्तप्राणों में से पाँच प्राणों को चूस जाते हैं और उससे अपनी शक्ति बढ़ा लेते हैं । बकरे, भैंसे, मुरगे आदि के बलिदानों का आधार यही है । मृत मनुष्यों के शरीर में एक सप्ताह तक कुछ उपचक्र एवं ग्रंथियों में चैतन्यता बनी रहती है । श्मशान भूमि में रहकर मुरदों के द्वारा शव साधना करने वाले अघोरी उन मृतकों से भी शक्ति चूसते हैं । देखा जाता है कि कई अघोरी मृत बालकों की लाशों को जमीन में से खोद ले जाते हैं, मृतकों की खोपड़ी लिए फिरते हैं, चिताओं पर भोजन पकाते हैं । यह सब इसी प्रयोजन के लिए किया जाता है ।
Table of content
1. गायत्री का गोपनीय वाम मार्ग
2. अथ गायत्री तंत्र
Author |
Pt. shriram sharma |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
30 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |