Preface
प्रत्यक्षवाद की कसौटी पर सही उतरने के कारण विज्ञान ने आत्मा की-परमात्मा की, कर्मफल की सत्ता को नकारा है। यदि उसकी यह बात मान ली जाय तो आदर्शवादिता, नैतिकता, सामाजिकता का कोई ठोस आधार शेष नहीं रह जाता, स्वार्थ सिद्धि ही सर्वोपरि बुद्धिमत्ता पर ठहरती है। ऐसी स्थिति में सर्वत्र आराजकता एवं उद्धत अनाचार का ही बोलबाला रहेगा। अध्यात्म को नकारने की प्रतिक्रिया मनुष्य समाज को प्रेत-पिशाचों का जमघट बनाकर ही छोड़ेगी।
इस विषम परिस्थिति में अध्यात्म की पुनर्स्थापना केवल श्रद्धा के बल पर सम्भव नहीं है। उसे विज्ञान और प्रत्यक्षवाद की कसौटी पर भी खरा सिद्ध करना होगा। इसी आधार पर प्रबुद्ध वर्ग को वे सनातन सत्य स्वीकार करने के लिए बाध्य किया जा सकेगा, जिनकी आवश्यकता मनुश्य के विकास के अनिवार्य रूप है। शान्तिकुज्ञ्ज् के ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान ने यही लक्ष्य हाथ में लिया है कि "बुद्धिवाद को विज्ञान की कसौटी कसकर, अध्यात्मवाद की गरिमा स्वीकार करने के लिए प्रत्यक्षवाद को सहमत किया जाय।"
Table of content
1. अध्यात्म और विज्ञान की सहकारिता
2. महाप्रज्ञा की चौबीस शक्तियों का संक्षिप्त परिचय
3. प्रयोगशाला एवं संदर्भ ग्रन्थालय
4. वनौषधि उपचार एक-संजीवनी विद्या
5. वनौषधियों का वाष्पीकृत स्थिति में प्रयोग
6. शब्दयोग एवं संगीत की प्रभावोत्पादक सामर्थ्य
Author |
Pt. Shriram sharma acharya |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
60 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |