Preface
धर्म को संवेदना का उद्गम-स्रोत कह सकते हैं वह उपदेश नहीं उपचार है जिसके सहारे दिव्य चक्षुओं पर चढ़ी धुंध को दूर किया जा सकता है उस धुंध के हटने पर पदार्थ के अंतराल में संव्याप्त सत्ता को देखा जाता है उसी के सहारे उस ब्रह्मांडव्यापी चेतना की अनुभूति होती है ? जिसे विश्वात्मा कहा जाता है और जिसका एक घटक आत्मा है । विचार से पदार्थ के गुण-धर्म-स्वभाव और उपयोग को जाना जाता है ? धर्म से आत्मा का साक्षात्कार होता है और जीवन को आत्मा के अनुशासन में चलने के लिए प्रशिक्षित और अभ्यस्त किया जाता है ।
Table of content
1. धर्म अफीम की गोली नहीं
2. धर्म की सत्ता और उसकी महान महत्ता
3. विज्ञान उपयोगी है, परिपूर्ण नहीं
4. विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय निश्चित
5. सांस्कृतिक एकता का आधार धर्म
6. विज्ञान भावनाशील बने और धर्म तथ्यानुयायी
7. धर्म का उद्देश्य व्यक्तित्व का परिष्कार
Author |
Pt. shriram sharma |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
100 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |