Preface
स्वामी दयानन्द सरस्वती जिस समय राजस्थान के राजाओं को देशभक्ति और समाज सुधार की शिक्षा दॆने के लिए विभिन्न रियासतों में भ्रमण कर रहे थे, उस समय जोधपुर के महाराज यशवंत सिंह ने उनको अपने यहाँ आने को आमंत्रित किया। स्वामीजी के कई शुभचिंतकों ने उनको जोधपुर न जाने की सलाह दी, क्योंकि वहाँ की आन्तरिक स्थिति उनके अनुकूल नहीं थी और किसी कुचक्र में फँस जाने का अंदेशा था। पर स्वामीजी सदा साहस और निर्भीकता से कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना करते आए थे, इसलिए वे इस प्रकार की आशंकाओं से तनिक भी न घबरए और अपने धर्म प्रचार के कर्तव्य का पालन करने के लिए नियत समय पर जोधपुर पहुँच गए।
ऐसी असाधारण महानता किसी को सहज में प्राप्त नहीं हो जाती। मूलशंकर (स्वामी दयानन्द का पूर्व नाम) एक सामान्य ब्राह्मण – सरकारी अधिकारी के पुत्र थे। १४-१५ वर्ष की आयु तक उनका जीवन साधारण ग्रामीण बालकों की तरह अपने गाँव टंकारा (मोरवी, काठियावाड़) में व्यतीत हुआ। तब तक दो ऐसी घटनाएँ हुईं, जिनसे उनके हृदय में ईश्वर और धर्म की वास्तविकता जानने की जिज्ञासा हुई। उसी की प्रेरणा से वे सच्चे साधुओं और योगियों कीखॊज में बिना किसी को बताए घर से निकल पड़े और कई वर्ष तक जंगलों और पर्वतों की खाक छानकर मथुरा में स्वामी विरजानन्द जी के शिष्य बन गए। स्वामी विरजानन्द जी वैदिक साहित्य के प्रसिद्ध ज्ञाता थे। उनके पास दो-तीन वर्ष अध्ययन करके और गुरुदक्षिणा के रूप में वैदिक सिद्धान्तों के प्रसार की प्रतिज्ञा करके, वे देश भ्रमण को निकल पड़े। उस अंधकार युग में - जब कि देश की समस्त जनता तरह-तरह की निरर्थक और हानिकारक रूढ़ियों में ग्रस्त थी, जिससे स्वामी जी को पग-पग पर लोगों के विरोध, विघ्न-बाधा और संघर्ष का सामना करन पड़ा।
Table of content
1. हिन्दू जाती के उद्धारक
2. साधारण से असाधारण बनने का मार्ग
3. पाखण्ड खंडिनी पताका
4. स्वामी जी की प्रत्युत्पन्न मति
5. प्रलोभनों को ठुकराया
6. गौ रक्षा के लिए उद्योग
7. स्त्री शिक्षा का प्रचार
8. हिन्दी ही राष्ट्रभाषा है
9. स्त्रियों को धार्मिक और सामजिक अधिकार
10. अंध परम्पराओं का निराकरण
Author |
Pt. Shriram sharma acharya |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |