Preface
युगद्रष्टा के स्तर की अवतारी सत्ता के रूप में परमपूज्य गुरुदेव ने अपने अस्सी वर्ष के जीवनकाल (१९११-११९०) में जितना भी कुछ किया, उसकी मिसाल कहीं देखने को नहीं मिलती । करोड़ों व्यक्तियों के मनों का निर्माण, उनके सोचने के तरीके में बदलाव एवं युग निर्माण की पृष्ठभूमि बनाकर रख देने का कार्य इन्हीं के स्तर की सत्ता कर सकती थी, जो लाखों वर्षों में कभी-कभी धरती पर आती है । उनके द्वारा की गयी स्थापनाओं का जब प्रसंग आता है, तब ईंट-गारे-चूने-सीमेन्ट से बने भवनों से पहले उनकी स्नेह-संवेदना से सिक्त हुए ममत्व में स्नान कर उनके अपने हो गए लाखों व्यक्ति दिखाई पड़ते हैं, जिन्होंने उनके एक इशारे पर अपना सब कुछ उनको अर्पित कर दिया । परमपूज्य गुरुदेव ने अपनी दिव्य दृष्टि से यह सब पूर्व में ही देख लिया था कि कोई भी भव्य निर्माण, आश्रम या तंत्र बनाने से पूर्व राष्ट्र को सांस्कृतिक, भौतिक, आध्यात्मिक आजादी दिलाने वाले अगणित व्यक्ति तैयार करने पड़ेंगे । आचार्यश्री ने पहले स्वयं को तपाया, तदुपरांत वैचारिक क्रांति के निर्माण का आधारभूत तंत्र स्वयं व परमवंदनीय माताजी के रूप में खड़ा किया ।
Table of content
1. युगतीर्थ आँवलखेडा़
2. अखण्ड़ ज्योति संस्थान
3. गायत्री तपोभूमि, मथुरा
4. शांतिकुञ्ज हरिद्वार
5. ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान
6. देवसंस्कृति विश्वविद्यालय
Author |
Pt. shriram sharma |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |