Preface
बीज में प्राण तत्त्व होता है । वही नमी और आरंभिक पोषक अनुकूलता प्राप्त करके अंकुरित होने लगता है । इसके उपरांत वह बढ़ता, पौधा बनता और वृक्ष की शकल पकड़ता है नहीं, यह इस बात पर निर्भर है कि जड़ें जमाने का आवश्यक खाद, पानी व पोषण प्राप्त हुआ या नहीं । यदि उसकी आवश्यताएँ पूरी होती चलें तो बढ़वार रुकती नहीं, किन्तु, यदि बीज अपने स्थान पर बोरे में ही बंद रखा रहे, उसे सुखाया कीड़ों से बचाया जाता रहे तो वह मुद्दतों तक यथा स्थिति अपनाए रहेगा । बहुत पुराना हो जाने पर काल के प्रभाव से वह हतवीर्य हो जाएगा अथवा घुन जैसे कीड़े लगकर उसे नष्ट कर देंगे ।
बीज में उगने की शक्ति होती है यदि वह पका हुआ हो । यदि उसे कच्ची स्थिति में ही तोड़ लिया गया है तो वह खाने के काम भले ही आ सके; बोने और उगने की क्षमता विकसित न होगी । वह देखने में तो अन्य बीजों के समान ही होगा, पर परखने पर प्रतीत होगा कि उसमें वह गुण नहीं है, जो परिपक्व स्थिति वाले बीजों में पाया जाता है ।
हर मनुष्य में प्राणशक्ति होती है, पर उसकी मात्रा में बनी रहती है । यह इस बात पर निर्भर रहता है कि प्राण बीज को प्रौढ़ बनाने के लिए जानकारी अथवा गैर परिपक्वता लाने वाले प्रयत्न होते रहे या नहीं ।
Table of content
1. अंतराल में निहित सिद्धि-वैभव
2. प्राण शक्ति का संरक्षण-अभिवर्धन
3. प्राणशक्ति और वैज्ञानिक अभिमत
4. मानवी काया एक उच्चस्तरीय विद्युत्भंडागार
5. क्यों धधक उठते हैं ये शोले
Author |
Pt. Shriram sharma acharya |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
40 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |