Preface
इस संसार में दिखाई पड़ने वाली और न दीखने वाली जितनी भी वस्तुएँ तथा शक्तियाँ हैं, उन सबके संपूर्ण योग का नाम प्राण है । इस विश्व की अति सूक्ष्म और अति उत्कृष्ट सत्ता को प्राण ऊर्जा कह सकते है । श्वास-प्रश्वास क्रिया तो उसकी वाहन मात्र है, जिस पर सवार होकर वह हमारे समस्त अवयवों और क्रिया-कलापों तक आती-जाती और उन्हें समर्थ, व्यवस्थित एवं बनाये रहती है । भौतिक जगत् में संव्याप्त गर्मी-रोशनी, बिजली, चुंबक आदि को उसी के प्रति-स्फुरण समझा जा सकता है । वह बाह्य और अंतर्मन से संबोधित होकर इच्छा के रूप में, इच्छा से भावना के रूप में, भावना से आत्मा के रूप में परिणत होती हुई अंतत: परमात्मा से जा मिलने वाली इस विश्व की सर्व समर्थ सत्ता है । इस प्रकार से उसे परमात्मा का कर्तव्य माध्यम या उपकरण ही माना जाना चाहिए ।
Table of content
1. अतींद्रिय सामर्थ्यों का मूल स्रोत-प्राणमय कोश
2. दूरदर्शन के छिपे सत्य
3. अतींद्रिय ज्ञान की प्राप्ति
4. मानवी विद्युत्-अति प्रचंड शक्ति
5. प्राण की अजस्त्र धारा हमारे लिए
6. गायत्री का देवता-सविता
7. गायत्री उपासना से प्राणशक्ति का अभिवर्धन
Author |
Pt. shriram sharma |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
128 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |