Preface
युग शक्ति का उद्भव और युग निर्माण
किसी कार्य को करने के लिए शक्ति एवं साधनों की आवश्यकता पड़ती है। युग निर्माण के लिए जन साधन जुटाने का कार्य ज्ञानयज्ञ के माध्यम से चल रहा है ।। शक्ति का उत्पादन आत्म- साधना के सहारे किया जा रहा है ।। युग शक्ति का, युग चेतना का उद्भव इन्हीं दोनों शक्तियों के द्वारा संभव हो सकेगा ।। इस संदर्भ में अधिक स्पष्ट और अधिक विस्तृत रूप से इस प्रकार समझा जा सकता है ।।
युग निर्माण अभियान का लक्ष्य है- मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण ।। श्रेष्ठ व्यक्ति की ही देव संज्ञा है ।। देवता स्वर्ग में रहते हैं ।। स्वर्ग ऊपर है ऊपर ऊँचाई की स्थिति ही स्वर्ग है ।। स्वर्ग से तात्पर्य है व्यक्तित्व ।। वह दृष्टिकोण, वह क्रिया- कलाप जो सर्वसाधारण की तुलना में ऊँचा, उच्चस्तरीय हो ।। ऐसा वातावरण जिसमें श्रेष्ठता, सज्जनता और शालीनता छाई रहती हो, स्वर्ग कहा जाएगा ।। जहाँ ऐसी मनःस्थिति होगी वहाँ सहज सुख- शांति की, समृद्धि और प्रगति की परिस्थितियाँ रहेंगी ही ।। मानवी कर्तृत्व का आधे से अधिक भाग आक्रमणों से रक्षा करने, आशंकाओं का समाधान ढूँढने और आक्रोश- आवेगों की प्रेरणा से ध्वंस करने वाले कृत्य करने में खरच होता रहता है ।। यदि इसे बचाकर सृजन में लगाया जा सके तो निश्चित रूप से उनके द्वारा आंतरिक प्रसन्नता और बाह्य सुविधा की अभिवृद्धि में भारी योगदान मिल सकता है ।। स्वर्ग के अवतरण का, धर्म- राज्य के संस्थापन का स्वरूप यही है ।। यह सम्मिलित प्रक्रिया है ।। मनुष्यों का समूह ही समाज है ।। सामाजिक सतवृत्तियाँ ही स्वर्ग का निर्माण करती हैं ।। समाज निर्माण के लिए व्यक्ति का निर्माण करना होगा ।।
Table of content
• युग शक्ति का उद्भव और युग निर्माण
• परिवार की पाठशाला में सुसंस्कारी प्रशिक्षण
• पर्व त्योहारों द्वारा लोक शिक्षण
• आत्मविश्वास के आधार स्तंभ
• नवरात्र पर्व पर तपश्चर्या और ज्ञान साधना का समन्वय
• शाखा संगठनो के वार्षिकोत्सव
• लोक शिक्षणों के लिए मेलों का उपयोग
Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2009 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
64 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |