Preface
असंतोष की आग से बचिए
महत्त्वाकांक्षाएँ अनियंत्रित न होने पावें
आजकल हमारा जीवन संघर्ष इतना बढ़ गया है कि हमें जीवन में संतोष और शांति का अनुभव ही नहीं हो पाता ।। बहुत से लोग जीवनभर विकल और विक्षुब्ध ही रहते हैं ।। हम जीवन में दिन- रात दौड़ते हैं, नाना प्रयत्नों में जुटे रहते हैं ।। कभी इधर कभी उधर हमारी घुड़- दौड़ निरंतर चालू ही रहती है ।। किंतु फिर भी हममें से बहुत कम ही जीवन की प्रेरणाओं का स्रोत ढूँढ पाते हैं, विरले ही जीवन की यथार्थता का साक्षात्कार कर पाते हैं ।। जहाँ हमें सहज ही शांति और संतोष की उपलब्धि होती हैं, वहाँ बहुत ही कम पहुँच पाते हैं ।। आजीवन निरंतर सचेष्ट रहते हुए भी हममें से बहुतों को अंत में पश्चात्ताप और खिन्नता के साथ ही जीवन छोड़ना पड़ता है ।।
हमें लक्ष्य- भ्रष्ट करने में विकृत महत्त्वाकांक्षाओं का बड़ा हाथ है ।। ये हमें जीवन के सहज और स्वाभाविक मार्ग से भटकाकर गलत मार्ग पर ले जाती हैं ।। इनके कारण हमें जो करना चाहिए उसकी तो हम उपेक्षा कर देते हैं और जो हमें नहीं करना चाहिए वह करने लगते हैं ।।
यों जीवन में आकांक्षाओं का होना आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना तो जीवन जड़ बन जाएगा ।। प्रगति का द्वार ही बंद हो जाएगा ।। आज संसार का जो विकसित प्रगतिशील स्वरूप दिखाई देता है, वह बहुत से व्यक्तियों की आकांक्षाओं का ही परिणाम है ।। किसी वैज्ञानिक के मस्तिष्क में जब यह प्रश्न उठता है कि यह क्या है, कैसा है, कैसे चल रहा है ? तो उसे जानने के लिए मचल उठता है, उसके लिए तन्मय होकर अपने को अंत तक लगाए रखना, संसार में महान वैज्ञानिक आश्चर्यों का द्वार खोल देता है ।।
Table of content
1. महत्वाकांक्षाएँ अनियंत्रित न होने पावें
2. तीन एषणाएँ
3. वित्तेषणा की डाकिन
4. पिशाचिनी पुत्रेषना
5. लोकेषणा की हेय लालसा
6. इच्छाएं अनियंत्रित न हों
7. अशांति के चार चरण और उनका निवारण
Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2013 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
40 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |