Preface
मातृभूमि की सच्ची सेविका- श्रीमती सरोजिनी नायडू
लगभग सौ वर्ष पूर्व की बात होगी की इंगलैड की एक निजी "गोष्ठी ने एक १५-१६ वर्ष की भारतीय बाला उस देश के दो- चार प्रसिद्ध साहित्यिकों से वार्तालाप कर रही थी। अंग्रेजी साहित्य का प्रसिद्ध आलोचक एडमंड गोले भी उनमें से एक था ।। कुछ सोच- विचार कर उसने अपनी कुछ काव्य- रचनाएँ गोसे के हाथ में दी और कहा इनके विषय में अपनी सम्मति देने की कृपा करें।"
गोसे ने बड़े ध्यान से उन रचनाओं को पढ़ा, उन पर विचार किया और फिर कहने लगा- शायद मेरी बात आपको बुरी जान पड़े, पर मेरी सच्ची राय यही है कि आप इन सब रचनाओं को रद्दी की टोकरी में डाल दें। इसका आशय यह नहीं कि यह अच्छी नहीं हैं। पर तुम जैसी एक बुद्धिमती भारतीय नारी से, जिसने पश्चिमी भाषा और काव्य- रचना में दक्षता प्राप्त कर ली है, हम योरोप के वातावरण और सभ्यता को लेकर लिखे गये काव्य से तुलना की अपेक्षा नहीं करते। वरन् हम चाहते हैं कि आप हमको ऐसी रचनाएँ दे, जिनसे हम न केवल भारत के वरन् पूरे पूर्व की आत्मा के दर्शन कर सकें।
अपनी रचनाओं की यह आलोचना उस कवयित्री को बहुत हितकर जान पड़ी और उसी दिन से उसने गोसे को अपना गुरु मान लिया। उसके पश्चात् उसने जो काव्य- रचना की, उसने योरोप की नकल करने के बजाय भारत और पूर्व से अंतर्निहित विशेषताओं के
दर्शन ही योरोप वालों ने किये और सर्वत्र उनका बड़ा। सम्मान होने
लगा ।।
यह बाला और कोई नहीं "भारत-कोकिला" के नाम से प्रसिद्ध श्रीमती सरोजिनी नायडू (सन् १८७६ से १६४६) ही थी।
Table of content
• देश-सेवा की लगन
• असहयोग आंदोलन
• भारत सरकार से संघर्ष
• अफ्रीका यात्रा
• कांग्रस के अध्यक्ष
• सांप्रदायिक एकता
• साहित्यिक से राजनीतिक
• स्वाधीनता के पुण्य पर्व पर
• उत्तरप्रदेश के राज्यपाल के पद पर
• महान पुरुषों की श्रद्धांजलियाँ
• स्त्री धर्म संबंधी विचार
• भारतीय नारीत्व का विकास और श्रीमती नायडू
Author |
Pt. shriram sharma |
Edition |
2015 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |