Preface
संतुलन और गतिशीलता का एकमात्र आधार
सृष्टि में चारों ओर, जिधर भी दृष्टि दौड़ाई जाए, एक ही बात दृष्टिगोचर होगी कि सब कुछ शांत, सुव्यवस्थित और योजनाबद्ध ढ़ंग से चल रहा है ।। इस सुव्यवस्था और क्रमबद्ध गतिशीलता का एक प्रमुख आधार है दूसरों के लिए अपनी सामर्थ्य और विशेषताओं का उपयोग- समर्पण ।। सृष्टि का कण- कण किस प्रकार अपनी विभूतियों का उपयोग दूसरों के लिए करने की छूट दिए हुए है यह पग- पग पर देखा जा सकता है ।। शरीर की व्यवस्था और जीवन चेतना किस प्रकार जीवित बनी रहती है- इसी का अध्ययन किया जाए तो प्रतीत होगा कि स्थूल शरीर के क्रियाकलाप स्वेच्छया संचालित नहीं होते, बल्कि कोई परमार्थ चेतना संपन्न दूसरों के लिए अपना उत्सर्ग करने की प्रवृत्ति वाले कुछ विशिष्ट तत्त्व उसमें अपनी विशिष्ट भूमिका निबाहते हैं ।।
कुछ समय पूर्व यह समझा जाता था कि रक्त - मांस का पिंड शरीर आहार- विहार द्वारा संचालित होता है ।। यह तो पीछे मालूम पड़ा कि आहार शरीर रूपी इंजिन को गरम बनाए रहने के लिए ईंधन मात्र का काम करता है ।। उस आधार पर यह भी पाया गया कि पेट, हृदय और फेफड़ों को संचालक तत्त्व नहीं माना जा सकता ।। शरीर के समस्त क्रियाकलापों का संचालन मूलत: चेतन और अचेतन मस्तिष्कों द्वारा होता है उन्हीं की प्रेरणा से विविध अंग अपना- अपना काम चलाते है ।। अस्तु स्वास्थ्य बल एवं बुद्धिबल को विकसित करने के लिए मस्तिष्क विद्या के गहरे पर्तों का अध्ययन आवश्यक समझा गया है और अभीष्ट परिस्थितियाँ उत्पन्न करने के लिए उसी क्षेत्र को प्रधानता दी गई ।। पिछले दिनों जीव विज्ञानियों ने शरीर शोध अन्वेषण की ओर से विरत होकर अपना मुँह मनशास्त्र की ऊहापोह पर केंद्रित किया है ।।
Table of content
• संतुलन और गतिशीलता का एकमात्र आधार
• अपनापन विकसित कीजिए
• सुख, भोग में नहीं परोपकार में है
• केवल स्वार्थ ही न सोचते रहिए
• दृश्य जगत की परमार्थ प्रेरणा
• उपयोगिता नहीं, परमार्थपरायणता
• प्राणि परिवार में सहयोग-सद्भाव बढ़ाया जाए
• मानवेतर प्राणियों का संसार-पारिवारिक जीवन
Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2013 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
104 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |