Preface
प्रकृति का भंडार इतना विशाल है कि उसे जितना खोजा जा सके उतना ही कम है। भौतिक विज्ञान से बढ़कर चेतना विज्ञान है। जड़ शक्तियों की तुलना में चेतना शक्तियों की क्षमता एवं उत्कृष्टता का बाहुल्य स्वीकार करना ही पड़ेगा
मनुष्य का कर्तव्य उसकी सफलताओं का कारण है, यह तथ्य सर्वविदित है। पर मान्यता भी एक अंश तक ही सही है। इसके साथ एक काऱण और भी जुड़ा हुआ प्रतीत होता है-निर्धारित नियति। भले ही वह अपने ही पूर्व संचित कर्मों का फल ही हो, या उसका संचालन किसी अदृश्य से सम्बन्धित हो। प्रकृति के अद्भुत रहस्यों में से कुछ को मनुष्य ने एक सीमा तक ही जाना है। अभी बहुत बड़ा क्षेत्र अनजाना और अछूता पड़ा है।
Table of content
1. अद्भुत स्रष्टा के अद्भुत रहस्य
2. प्राणसत्ता का उदय और विकास स्रोत
3. अमीबा से नहीं, मनुष्य ईश्वर की इच्छा से बना है
4. मान भी लें कि विकास क्रम सही है, पर..
5. प्रत्यक्ष से भी विचित्र अदृश्य संसार
6. विकासवाद अधूरी और एकांकी मान्यता
Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
100 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |