Preface
अपना सुधार- संसार की सबसे बड़ी सेवा
मन एक देवता है ।। इसे ही शास्त्रों में प्रजापति कहा गया है ।। वेदांत में बतलाया गया है कि हर व्यक्ति की एक स्वतंत्र दुनिया है और वह उसके मन के द्वारा सृजन की हुई है ।। मनुष्य की मान्यता, भावना, निष्ठा, रुचि एवं आकांक्षा के अनुरूप ही उसे सारा विश्व दिखाई पड़ता है ।। यह दृष्टिकोण बदल जाए तो मनुष्य का जीवन भी उसी आधार पर परिवर्तित हो जाता है ।। इस मन देवता की सेवा पूजा का एक ही प्रकार है, मन को समझा- बुझाकर उसे सन्मार्ग पर लगाना ।। सही दृष्टिकोण अपनाने के लिए सहमत करना ।। यदि यह सेवा कर ली जाए तो सामान्य व्यक्ति भी महापुरुष बन सकता है ।। उसके वरदान का चमत्कार प्रत्यक्ष देख सकता है ।।
इस तथ्य की सुनिश्चितता में रत्तीभर भी संदेह की गुंजायश के लिए स्थान नहीं है कि जो हम सोचते हैं सो करते हैं और जो करते है सो भुगतते है ।। मन ही हमारा मार्गदर्शक है, वह जिधर ले चलता है शरीर उधर ही जाता है ।। यह मार्गदर्शक यदि कुमार्गगामी है तो विपत्तियों और वेदनाओं के जंजाल में फंसा देगा और यदि सुमार्ग पर चल रहा है तो शांति और समृद्धि के सत्परिणाम उपलब्ध होना सुनिश्चित है ।। ऐसे अपने इस भाग्य विधाता की ही सेवा हम क्यों न करें ? इस मार्गदर्शक को ही क्यों न पूजें ?
Table of content
1. अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा
2. सेवा का सबसे बड़ा अधिकारी हमारा मन
3. हम अपनी ही सेवा क्यों न करें?
4. गुत्थियों का हल अपने भीतर है
5. सच्चरित्रता अनिवार्य है
Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2013 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |