Preface
तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण को ही पंचांग कहाजाता है । पंचांग के इन अंगों के मूल आधार भ कक्षामें गतिशील ग्रह हैं । भ कक्षा में ग्रहों की स्थिति मापनही ग्रह स्पष्टीकरण कहा जाता है । ग्रह स्पष्टीकरण पंचांग का प्राण माना जाता है, क्योंकि इस स्थिति-परिस्थिति की व्याख्या स्पष्ट ग्रहों से ही संभव है । ज्योतिष की प्रत्यक्षता का ज्वलन्त प्रमाण सूर्य, चन्द्रग्रहण एवं ग्रहों के उदयास्त ही सामान्य जन मानतेहैं । सूर्य-चन्द्र का क्षितिज जन्म उदयास्त एवं अन्यग्रहों का सूर्यासन् जनित उदयास्त ही व्रत-पर्वों सेसंबंध रखता है । अभीष्ट काल में ग्रहों के दृक्सिद्धनिरयण पद्धति के गणितागत मापन की प्रत्यक्षता केलिए वेधशाला की आवश्यकता होती है, क्योंकि आकाशस्थ समस्त बिन्दु सायन मान से गतिमान हैं । हमारे आचार्यों ने निर्देश दिया है, कि ग्रहों की प्रत्यक्षता का निरीक्षण वेधशालाओं द्वारा करतेरहना चाहिए । पंचांग की समग्र आवश्यकताओं की पूर्तिकरने में सक्षम- यह लघु ग्रंथ ।
Table of content
१. वैजयन्ती नाम पंचाग गणितम् का मूल
२. पंचांग गणित करने की विधि
३. तिथि, योग और नक्षत्र गणित
४. पंचांग प्रारूप और परिवर्तन विधि
५. पंचांग देखने की विधि
६. अहर्गण निर्माण विधि
७. सूर्यादिग्रहों के स्पष्टीकरण की विधि
८. गुरु, शुक्र उदयास्त की विधि
९. चन्द्रोदय साधन प्रकार
१०. सूर्य चन्द्र ग्रहण विधि
११. वेधशाला निर्माण विधि.
१२. गुरु -शनि का मोठा एवं लहान संस्कार
१३. गायत्री तीर्थ, शान्तिकुञ्ज एवं देव संस्कृति विश्वविद्यालय : एक परिचय
Author |
Pandit Kalyandutt Sharma |
Edition |
2011 |
Publication |
Shri Ved Mata Gayatri Trust |
Publisher |
Shri Vedmata Gayatri Trust |
Page Length |
120 |
Dimensions |
139mm X211mm X 6mm |