Preface
मानव शरीर इस धरती की सबसे बड़ी ईश्वरीय विभूति है ।। भगवान ने इसे बनाने में असाधारण श्रम किया है और इसे सर्वांगपूर्ण बनाने में कुछ उठा नहीं रखा है ।। यह परब्रह्म की सर्वोपरि कलाकृति है ।। मस्तिष्क में उठने वाले विचारों और अन्तःकरण में उठने वाले भावों की क्षमता इतनी अधिक है कि उनके आधार पर मनुष्य देवोपम आनन्द एवं उल्लास अनुभव कर सकता है ।। अपने को प्रकाशवान बनाते हुए उस प्रकाश से अन्य अनेकों को प्रकाशवान कर सकता है ।। आनन्द तो इसके रोम- रोम में भरा पड़ा है ।। यदि वह विकृतियों और भ्रान्तियों की माया- मूढ़ता से बचा रह सके तो प्रभु के इस परम पवित्र संसार में उसे आह्लाद का अविरल स्रोत फूटता हुआ परिलक्षित होता है ।।
प्रभु ने मानव शरीर की रचना में इतना अधिक श्रम इसलिए किया है कि वह उसके द्वारा नियोजित परमार्थ महायज्ञ का प्रधान होता- अध्वर्यु बनकर विश्व वसुधा को सर्वांग सुन्दर बनाने में आवश्यक योगदान कर सके ।। यों यह जगत जड़ है उसमें सब कुछ ऊबड़- खाबड़ और अस्त- व्यस्त है पर प्रेम पुण्य और परमार्थ के दिव्य तत्वों का इसमें समन्वय हो जाने से सब कुछ दर्शनीय, अभिनन्दनीय बन गया है ।। प्रभु की इच्छा है कि मनुष्य के द्वारा उसकी विनिर्मित सृष्टि में सत्य, शिवं, सुन्दरम् की प्राण प्रतिष्ठा निरन्तर की जाती रहे ।। उपनिषद्कार की भाषा में यह विश्व एक सुविस्तृत यज्ञ है ।। मानव शरीर को इसमें आहुति रूप बनकर यज्ञाग्नि में प्रवेश करने के लिए उत्पन्न किया गया ताकि विश्व की यज्ञीय गौरव गरिमा अक्षुण्ण बनी रहे ।।
Table of content
* अंत्येष्टि संस्कार - विधि
Author |
Pt. Shriram sharma acharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
9 cm x 12 cm |