Preface
प्रेम का प्रतिदान कैसे हो ?
अब तक का सारा जीवन हमने एक ऐसी सत्ता के इशारे पर गुजारा है जो हर घड़ी हमारे साथ है ।। हमारी हर विचारणा और गतिविधि पर उसका नियन्त्रण है ।। बाजीगर की उँगलियों से बंधे हुए धागों के साथ जुड़ी हुई कठपुतली तरह- तरह के अभिनय करती है ।। देखने वाले इसे कठपुतली की करतूत मानते हैं पर असल ने यह बेजान लकड़ी का एक तुच्छ सा उपकरण मात्र है ।। खेल तो बाजीगर की उँगलियाँ करती है ।। हमें पता नहीं कमी कोई इच्छा निज के मन में प्रेरणा से उठी है क्या ? कोई क्रिया अपने मन से की है क्या ? जहाँ तक स्मृति साथ देती है एक ही अपना क्रम एक ही ढर्रे पर लुढ़़कता चला आ रहा है कि हमारी मार्ग- दर्शक शक्ति, जिसे हम गुरुदेव के नाम से स्मरण करते हैं, जब भी जो निर्देश देती रही है बिना अनुनय लिए कठपुतली की तरह सोचने और करने की हलचलें करते रहे है ।।
सौभाग्य ही कहना चाहिए कि आरंभिक जीवन से ही हमें ऐसा मार्गदर्शन मिल गया ।। उसे अभागा ही कहना चाहिए जो ऐसा प्रकाश पाकर भी अंधकार में भटके ।। यदि हमारी कोई विशेषता और बहादुरी है तो यह इतनी भर कि प्रलोभनों और आकर्षणों को चीरते हुए देवी निर्देशों का पालन करने में हमने अपना सारा साहस और मनोबल झोंक दिया ।। जो सुझाया गया वहीं सोचा और जो कहा गया यहीं करने लगे ।।
Table of content
• प्रेम का प्रतिदान कैसे हो
• समय की चुनौती हमें झकझोरती है
• हमारी विवशता
• क्या छिपायें क्या बतायें
• प्रेम साधना का अभ्यास
• वसुधैव कुटुम्बकम हमारी गतिविधियों का मूल प्रयोजन
• सौम्य समता की प्रतिष्ठापना
• प्रयोजन अति महान-आरंभ अति सरल
Author |
Pt. shriram sharma |
Edition |
2013 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
96 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |