Preface
परमात्मा के अस्तित्व के विषय में समय-समय पर भिन्न- भिन्न मान्यताएँ बनाई जाती रही हैं । विभिन्न स्वरूप निर्धारित किए गए उनमें उलट-फेर होता रहा तथा आगे भी हो सकता है किंतु कुछ मूलभूत सिद्धांत सृष्टि में ऐसे हैं जो कभी नहीं बदलते तथा अदृश्य समर्थ सत्ता का अकाट्य प्रमाण प्रस्तुत करते हैं । (१) नियम व्यवस्था (२) सहयोग (३) विशालता (४) उद्देश्य-ये चार विशेषताएँ सृष्टिक्रम की ऐसी हैं जो पदार्थ से लेकर चेतन प्राणियों में दृष्टिगोचर होती हैं । विवेक दृष्टि से इनका अध्ययन किया जाए तो कोई कारण नहीं कि परमात्मसत्ता के अस्तित्व से इनकार किया जा सके ।
पिंड से लेकर ब्रह्मांड तथा चेतनजगत में एक नियम-व्यवस्था कार्य कर रही है । प्राणी पैदा होते, क्रमश: युवा होते तथा वयोवृद्ध होकर विनष्ट हो जाते हैं । इस प्रक्रिया में एक निश्चित उपक्रम दिखाई पड़ता है । ऐसा कभी नहीं होता कि कोई वृद्ध रूप में पैदा हो और युवा होकर बच्चे की स्थिति में पहुँचे । प्रत्येक जीव चाहे मनुष्य हो अथवा छोटे प्राणी सभी इस व्यवस्था के अंतर्गत ही गतिशील हैं । वृक्ष-वनस्पतियों का भी यही क्रम है । अंकुरित बीज बढ़ते तथा पेड-पौधों में विकसित होकर पुष्प, फल देते दिखाई देते और जराजीर्ण होकर मर जाते हैं । प्राणियों एवं वनस्पतियों के उत्पन्न होने, विकसित होकर जराजीर्ण स्थिति में जा पहुँचने और अंतत: विनष्ट हो जाने के क्रम में शायद ही कभी कोई व्यतिक्रम देखा जाता है ।
Table of content
1. कण-कण में संव्याप्त एक ही चेतन सत्ता
2. स्नेह-सहकारिता का समुच्चय यह प्रकृति जगत
3. संतुलन एवं अनुशासन की पर्याय ईश्वरीय विधि व्यवस्था
4. पारस्परिक सहयोगसे गतिशील जीवनचक्र
5. इकालाजी प्रणाली का एक ही ऊर्जाचक्र
6. यह सृष्टि मात्र संयोग नहीं है
7. सबके लिए एकसे नियम एकसा नियतिचक्र
8. सद्भाव एवं सहकार पर चल रहा ब्राह्मी चेतना का विराट परिवार
9. सहकार ही जीवन का प्राण
Author |
Pt. shriram sharma |
Edition |
2010 |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
104 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |