Preface
जड़ पदार्थों का निर्माण एवं संचालन चेतन तत्त्व द्वारा होता है। संसार में जितनी भी निर्जीव वस्तुएँ गतिशील दिखाई पड़ती हैं उनका संचालन चेतन प्राणियों द्वारा होता है। रेल, जहाज, मोटर, बैलगाड़ी, मशीनें, तार, रेडियो आदि में हलचल दिखाई देती है, वह मनुष्यकृत है। मनुष्य या पशुओं द्वारा यदि प्रयत्न- परिश्रम न किया जाए तो कृषि, उद्योग, परिवहन, शिक्षा, विज्ञान आदि की जितनी भी हलचलें दिखाई देती हैं, ये कहीं भी दिखाई न दें ।। जड़ पदार्थों का अस्तित्व तो है पर वे निर्जीव होने के कारण हलचल नहीं कर सकते ।। शरीरों को ही लीजिए कितने उपयोगी और आश्चर्यजनक कार्य वे करते हैं, पर यदि प्राण निकल जाए तो सुंदर एवं समर्थ देह भी निश्चेष्ट होकर सड़ने लग जाती हैं ।।
जिस प्रकार व्यवहार- संसार में होने वाली हलचलों का संचालक जीव है, उसी प्रकार इस विश्व ब्रह्मांड का, पंच तत्त्वों का निर्माता एवं संचालक परमेश्वर है ।। शरीर के भीतर रहने वाली चेतन- सत्ता आत्मा कहलाती है और विश्व शरीर के भीतर रहने वाली चेतना को परमात्मा कहते हैं ।। यदि परमात्मा न हो या निष्किय हो जाए तो विश्व की समस्त शक्तियों एवं व्यवस्थाएँ विश्रृंखलित हो जाएँ और प्रलय होने में क्षणभर की देर भी न लगे ।।
Table of content
1. हम सच्चे अर्थो में आस्तिक बनें
2. ईश्वर और उसका अस्तित्व
3. प्रशिक्षण एवं परीक्षा
4. उपासना का विश्लेषण
5. आत्म कल्याण क आधार
6. ईश्वर पक्षपाती नहीं न्यायकारी
7. ईश्वर का साक्षात्कार
8. ध्यान एवं सान्निध्य
9. प्रेम मे परमेश्वर
10. भक्ति का वास्तविक रुप
11. कृतज्ञता की भावना
12. समग्र सुविकसित व्यक्तित्व
13. अंतरात्मा की पुकार
14. जीवनसाथी का सहारा
15. सर्वोत्कृष्ट सत्संग की भूमिका
16. आत्म-प्रवंचना एवं लोक-विडंबना
17. आधर सही करें
18. आस्तिकता और समाज-कल्याण
Author |
Pt shriram sharma acharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |