Preface
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते
शिक्षा के साथ विद्या का भी समन्वय अनिवार्य
मानवी विकास में साधनों के योगदान की बात मोटी बुद्धि भी जानती है ।। अमीर लोग मौज उड़ाते, बुद्धिमान समझे जाते और वाहवाही लूटते हैं ।। शरीर भी अपेक्षाकृत स्वस्थ, सुंदर रहता है ।। सफलता और सुविधा पाने पर मन का प्रसन्न रहना और उत्साह के वातावरण में अधिक सूझ- बूझ का परिचय देना भी एक हद तक सही है ।। लोक- प्रचलन में भी यही मान्यता जड़ पकड़ती जा रही है कि जिसके पास अधिक साधन होंगे, वह अधिक समुन्नत होता चला जाएगा ।। इस प्रतिपादन का जोर- शोर से समर्थन साम्यवाद ने किया ।। उसने प्रगति का प्रमुख माध्यम अर्थ को माना और संपन्नों के हाथ की संपदा का सर्वसाधारण में वितरण करने और सभी को समृद्ध बनाने की बात पर पूरा जोर दिया ।। वे लोग वितरण तक ही अपने प्रयोग अग्रगामी बना सके, संपन्नता उनके हाथ नहीं लगी ।। अमेरिका ने एक कदम आगे बढ़कर वह रास्ता अपना लिया जिससे उस देश के नागरिक धनवान एवं सुविधा- संपन्न कहला सकें ।। इतने पर भी मूल प्रश्न जहाँ का तहाँ है कि व्यक्तित्व की दृष्टि से मनुष्य अर्थ साधनों के सहारे सुविकसित हो सकता है या नहीं ? इस कसौटी पर रूस- चीन जैसे साम्यवादी और अमेरिका जैसे पूँजीवादी देश के नागरिकों की व्यक्तिगत स्थिति को देखते हुए किसी उत्साहवर्द्धक निष्कर्ष पर पहुँचते नहीं बनता ।।
Table of content
• शिक्षा के ही साथ विद्या का भी समन्वय अनिवार्य
• वही शिक्षा सार्थक जो मनुष्य को स्वावलंबी बनाए
• साक्षरता विस्तार, पढे़ लिखों का महत्वपूर्ण दायित्व
• अध्यापक अपने गुरुत्तर दायित्व समझें
• सत्साहित्य का प्रसार समय की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता
• स्वाध्याय से ही महामानव जन्में हैं
• स्वाध्याय में प्रमाद न करें
Author |
Pt shriram sharma acharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
72 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |