Preface
पैसे में रचनात्मक शक्ति है, उसके द्वारा कितने ही उपयोगी कार्य हो सकते हैं और सदुद्देश्यों की पूर्ति में सहायता मिल सकती है । पर साथ ही यह भी न भूल जाना चाहिए कि उसकी मारक शक्ति उससे भी बढ़ी-चढ़ी है ।
धन का महत्त्व तभी है जब वह नीतिपूर्वक कमाया गया हो और सदुद्देश्यों के लिए उचित मात्रा में खर्च किया गया हो । अनीति से कमाया तो जा सकता है, जिन लोगों के द्वारा वह कमाया गया है, जिनका शोषण या उत्पीड़न हुआ है, उनका विक्षोभ सारी मानव सभ्यता के लिए घातक परिणाम उत्पन्न करता है । शोषित एवं उत्पीड़ित व्यक्ति जब देखते हैं कि उन्हें ठगा या सताया गया है और जिसने सताया या ठगा है वह मौज कर रहा है तो उनका मन आस्तिकता एवं नैतिकता के प्रति विद्रोह भावना से भर जाता है ।
यह विक्षोभ धर्म और ईश्वर पर से विश्वास डिगा सकता है और उस स्थिति में पड़ा हुआ मनुष्य अपने ढंग से, अपने से छोटों के साथ दुर्व्यवहार आरंभ कर सकता है । इस प्रकार बुराई की बेल बढ़ती है और उसके विषैले फल संसार में अनेकों प्रकार के दुष्परिणाम पैदा करते हैं । इस प्रकार फली हुई दुष्प्रवृत्तियों का कोई परिणाम उस पर भी हो सकता है, जिसने अनीतिपूर्वक किसी का शोषण किया था । बुराई से केवल बुराई बढ़ती है । धन यदि बुरे माध्यम से कमाया गया है तो उसका खरच भी उचित रीति से नहीं हो सकता ।
Table of content
• धन का उपार्जन एवं उपयोग
• श्रेष्ठता धन से नहीं धन्य कार्यों से
• अर्थोपार्जन के अध्यात्मिक प्रयोग
• अपने पैरों में कुल्हाडी़ न मारें
• प्रधानता धन को नहीं चरित्र को दें
Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
40 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |