Preface
जीवन विषयक अध्यात्म हमारे गुण, कर्म, स्वभाव से संबंधित है ।। हमें चाहिए कि हम अपने में गुणों की वृद्धि करते रहें ।। ब्रह्मचर्य, सच्चरित्रता, सदाचार, मर्यादापालन और अपनी सीमा में अनुशासित रहना ऐसे गुण हैं जो जीवन जीने की कला के नियम माने गए हैं ।। व्यसन, अव्यवस्था, अस्त- व्यस्तता व आलस्य अथवा प्रमाद जीवन कला के विरोधी दुर्गुण हैं ।। इनका त्याग करने से जीवन कला को बल प्राप्त होता है ।। हमारे कर्म भी गुणों के अनुसार ही होने चाहिए ।। गुण और कर्मों में परस्पर विरोध रहने से जीवन में न शांति का आगमन होता है और न प्रगतिशीलता का समावेश ।। हममें सत्यनिष्ठा का गुण तो हो, पर उसे कर्मों में मूर्तिमान करने का साहस न हो तो कर्म तो जीवन कला के प्रतिकूल होते ही हैं, वह गुण भी मिथ्या हो जाता है ।।
हम सदा सभी परमार्थी और सेवाभावी तो हैं और कर्मों में अपनी इन भावनाओं को मूर्तिमान भी करते हैं, किंतु यदि स्वभाव सें क्रोधी, कठोर अथवा निर्बल हैं, तो इन सद्गुणों और सत्कर्मों का कोई मूल्य नहीं रह जाता ।। किसी को यदि परोपकार द्वारा सुखी- क़रते हैं और किसी को अपने क्रोध का लक्ष्य बनाते हैं तो एक ओर का पुण्य दूसरे ओर के पाप से ऋण होकर शून्य रह जाएगा ।। गुण, कर्म, स्वभाव तीनों का सामंजस्य एवं अनुरूपता ही वह विशेषता है जो जीवन जीने की कला में सहायक होती है ।।
Table of content
1. युग्मऋषि का मार्गदर्शन चेतावनी ओर वेदना जीवन जीने की कला-अध्यात्म
2. अध्यात्म द्वारा विचारोँ का परिमार्जन
3. हम प्यार के सौदागर
4. विचारक्रांति युग की प्रमुख आवश्यकता
5. केवल सुने ही नही, कुछ करे भी
6. हम और मिशन एक ही है
7. प्रथम चरण विचारक्रांति, आगे सघर्श भी
8. स्वर्ग और मोक्ष हम पा चुके
9. चमत्कार मे रुचि न ले
10. परिवर्तन होकर रहेगा- पश्चाताप से बचेँ
11. भगोडे सैनिकोँ की दुर्दशा से बचे
12. हमारी शपथ जिसे पूरा करके रहेँगे
13. चिँतन की दिशा बदली -दुनियाँ बदली
14. पेट -प्रजनन के निरर्थक प्रयत्नो मे जीवन न खपे
15. हमारी उपलब्धियाँ तपश्चर्या का प्रतिफल
16. सावधान नया युग आ रहा है
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2012 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
72 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |