Preface
सफलता के तीन कारण होते हैं । (१) परिरिथति (२)प्रयत्न(३) भाग्य । बहुत बार ऐसी परिरिथतियाँ प्राप्त होती हैं जिनके कारण स्वल्प योग्यता वाले मनुष्य बिना अधिक प्रयत्न केबड़े-बड़े लाभ प्राप्त करते हैं । बहुत बार अपने बाहुबल से कठिन परिस्थितियो को चीरता हुआ मनुष्य आगे बढ़ता हैऔर लघु से महान बन जाता है । कई बार ऐसा भी देखा गयाहै कि न तो कोई उत्तम परिस्थिति ही सामने है, न कोई योजना, न कोई योग्यता, न कोई प्रयत्न पर अनायास ही कोई आकस्मिक अवसर आया जिससे मनुष्य कुछ से कुछबन गया । इन तीन कारणों से ही लोगों को सफलताएँ मिलती हैं ।
पर इन तीन में से दो को कारण तो कह सकते हैं साधन नहीं । जन्मजात कारणों से या किसी विशेष उावसरपर जो विशेष परिस्थितियाँ प्राप्त होती हैं, उनका तथा भाग्यके कारण अकस्मात टूट पड़ने वाली सफलताओं के बारे में कोई मार्ग मनुष्य के हाथ नहीं है ।
हम प्रयत्न को अपना कर ही उापने बाहुबल से सफलता प्राप्त करते हैं । यही एक साधन हमारे हाथ मे है । इस साधनको तीन भागों में बाँट दिया है-(१) आकांक्षा (२) कष्ट सहिष्णुता(३) परिश्रम शीलता । इन तीन साधनों को अपनाकर भुजबल से बड़ी सफलताएँ लोगों ने प्राप्त की हैं । इसी राजमार्ग पर पाठकों को अग्रसर करने का इस पुरतक में प्रयत्न किया गया है । जो इन तीन साधनों को अपना लेंगे, वे अपने अभीष्ट उद्देश्य की ओर दिन-दिन आगे बढ़ेंगे ऐसा हमारा सुनिश्चित विश्वास है ।
Table of content
(१) आकांक्षा
(२) कष्टसहिष्णुता
(३) परिश्रमशीलता
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
56 |
Dimensions |
181mmX121mmX2mm |