Preface
जीवन पथ के प्रदीप आपको उजियारे की सौगात सौंपने के लिए आए हैं । जीवन के लिए उजियारा बहुत जरूरी है । पथ पर उजियारा न हो तो अनायास ही भय, भ्रम और भटकन घेर लेते हैं । अँधेरे में, मन में अचानक ही अवसाद, विषाद का कुहाँसा छा जाता है । खिन्नता-विपन्नता ऐसे में जीवन का जैसे अविभाज्य अंग बन जाती है ।
आज की दशा कुछ ऐसी ही हो गयी है । मनुष्य के जीवन पथ, उसकी चेतना को अंधियारी ने घेर लिया है । वह भयभीत है, भ्रमित है, विषादग्रस्त है । अपने ही भ्रम में उसने स्वयं की छाया को भूत समझ लिया है और भयक्रान्त हो गया है । इसी भय और भ्रम में फँस कर उसने अपने से, अपनों से यद्ध छेड़ दिया है । लगातार चोटिल होने के बावजूद वह लड़े जा रहा है और उसके घाव बड़े जा रहे हैं ।
अंधियारे के कारण न तो किसी को सूझ रहा है और न समझ में आ रहा है कि वह किसी और से नहीं बल्कि अपने से और अपनों से लड़े जा रहा है । चोटें बढ़ रही हैं, घाव रिस रहे, पर इन्सान का उन्माद व उसका अवसाद कम नहीं हो रहा है । इनमें कमी तभी आ सकती है, जबकि जीवन पथ का अंधियारा घटे, हटे और मिटे ।
Table of content
• हम अपने भीतर झाँकना सीखें
• सफलता के मणिमुक्तक पाएँ तो कैसे ?
• आस्तिकता का यथार्थ
• गहना कर्मणो गतिः
• जीवन में त्याग की प्रतिष्ठा ही "मोक्ष"
• नर से नारायण बनने का परम पुरुषार्थ
• आत्मिक प्रगति का अवलम्बन : सेवा-साधना
• आत्मविजेता ही विश्वविजेता
• महानता से नाता जोड़ने की सूझबूझ
• भगवान् पवित्रता के क्षीर सागर में विराजते हैं
• सन्धिकाल की विषमवेला में वरिष्ठों का दायित्व
• काश! मनुष्य "जीवन देवता" के स्वरूप को समझ पाता
• वास्तविक अध्यात्म क्या है?
• धारा को चीरकर चल पडने जैसा पराक्रम
• सन्त, सुधारक और शहीद
• सच्चे शिष्य की पहचान
• भाग्य विधाता है मनुष्य अपने आपका
• जीवन एक कलाकार की तरह जीना सीखें
• समर्थ के अवलम्बन से ही आत्मिक प्रगति
• शान्तिकुञ्ज-प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष
• जगज्जननी की कृपा से नारी का स्वरूप बोध
Author |
Dr Pranav pandaya |
Edition |
2013 |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
220 |
Dimensions |
14 cm x 21.5 cm |