Preface
स्वाधीनता के मंत्र- द्रष्टा- दादाभाई नौरोजी
नौरोजी पालन जी दोर्दी ने जिस समय संसार से विदा ली उस समय उनके एकमात्र पुत्र दादाभाई की आयु केवल चार वर्ष की थी। परिवार कि आर्थिक स्थिति अच्छी न थी ।। दादाभाई के पिता बंबई के खदक नामक स्थान में एक छोटे से मकान में रहते थे और पुरोहिताई करते थे।
यद्यपि पारसियों में विधवा- विवाह की व्यवस्था है तथापि दादाभाई की माता माणिकबाई ने पुनर्विवाह करना पसंद न किया ।। उन्होंने आजीवन वैधव्य में रहकर और अपने परिश्रम के बल पर अपनी एकमात्र संतान दादाभाई को लिखा- पढ़ा कर योग्य बनाने में ही जीवन की सार्थकता समझी ।। संतानवती होने पर भी सांसारिक- लिप्साओं के होकर, जो विधवायें के बंधन में फँस जाती हैं ।। और उनकी संतानों किन- किन कठिनाइयों और बंधनों में जीवन चलाना पड़ता है उससे वे अनभिज्ञ न थी ।। वे जानती थी कि पुनर्विवाह कर लेने पर उनके पुत्र दादाभाई का विकास रुक जायेगा, जो उन्हें किसी प्रकार सह्य न था ।। अपनी कतिपय दुर्बलताओं के लालच में अबोध संतान का जीवन बरबाद कर देना उनकी दृष्टि में महापातक था ।। इसलिए आजीवन विधवा रहकर उन्होंने अपने पुत्र को शिक्षा- दीक्षा के साथ एक सुयोग्य नागरिक बनाने का निश्चय कर लिया ।।
दादाभाई की माता भारतीय माता का एक जीता-जागता उदाहरण थी । यद्यपि उन्हें अक्षर-ज्ञान तक न था, तथापि के संस्कारों के अधीन वे शिक्षा के महत्त्व को न केवल ही थी उनमें पूर्ण विश्वास रखती थी । दादाभाई की शिक्षा के लिए जिस तप, त्याग और परिश्रम का परिचय दिया, उसे जानकर भारतीय माताओं के पावन आदर्श के प्रति मस्तक नत हुए बिना नही
Table of content
1.स्वाधीनता के मंत्र- द्रष्टा- दादाभाई नौरोजी
Author |
Pt shriram sharma acharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
121X181X3 mm |