Preface
मानवी स्वास्थ्य एवं आयुष्य का मूलभूत आधार है आध्यात्मिक जीवनक्रम अपनाते हुए अपनी सांस्कृतिक मान्यताओं -चिरपुरातन आयुर्वेद की ‘‘स्वस्थवृत्त समुच्चय’’ जैसी धारणाओं को जीवन में उतारते हुए जीवनचर्या चलाना। आज व्यक्ति अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है। आधुनिक विज्ञान की बदौलत जीवित भी है तो दवाओं के आश्रय पर व किसी तरह जीवन की गाड़ी खींच रहा है। समस्त प्रगति के आयामों को पार करने के बावजूद भी ऐसा क्यों है कि बीमार सतत बढ़ते ही चले जाते हैं, रुग्णालय भी आयामों को पार करने के बावजूद भी ऐसा क्यों है कि बीमार सतत बढ़ते ही चले जाते हैं, रुग्णालय भी बढ़ रहे हैं व चिकित्सक भी किन्तु स्वास्थ्य लौटता कहीं नहीं दिखाई देता। अन्दर से वह स्फूर्ति तेजस्विता विरलों के ही अन्दर देखी जाती है। बहुसंख्य व्यक्ति निस्तेज रह किसी तरह तमाम असंयमों के साथ -साथ जीवन जीते देखे जाते हैं। परमपूज्य गुरुदेव ने स्वास्थ्य सम्बन्धी इस खण्ड में नीरोग जीवन का, चिरयौवन का मूलभूत आधार बताने का प्रयास किया है।
Table of content
१ चिरस्थायी यौवन
२ आरोग्य का आधार -शारिरिक श्रम
३ दीर्घ जीवन के रहस्य
४ जल्दी मरने की उतावली न करें
५ असंयम बनाम आत्मघात
६ नैसर्गिक जीवन -आवश्यकता और उपयोगिता
७ स्वास्थ्य रक्षा के कुछ सरल उपाय
८ स्वच्छता -मनुष्यता का गौरव
९ संयम बनाम सफलता
१० कब्ज से कैसे बचें
११ हम दुर्बल नहीं -शक्तिशाली बनें
१२ श्वांस सही तरीके से लीजिये
१३ व्यायाम -हमारी एक अनिवार्य आवश्यकता
१४ शारीरिक स्वच्छता पर पूरा ध्यान रखें
१५ सौन्दर्य बढ़ाने के उपाय
Author |
Pt. shriram sharma |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
567 |
Dimensions |
20 cm x 27 cm |