Preface
धर्मतन्त्र में प्रचण्ड शक्ति-सामर्थ्य छिपी पड़ी है । धर्म का प्रादुर्भाव ही प्रजा की, समाज की रक्षा के लिए हुआ है । धर्म का अर्थ है " आस्तिकता-संवेदना का जागरण । तत्त्वज्ञान (मेटाफिजीक्स),. नीतिमत्ता (एथीक्स) एवं अध्यात्म (स्प्रिचुएलिटी) की धुरी पर टिका धर्म जन-जन के मनों का निर्माण करता है । धर्मतंत्र यदि परिष्कृत है -मूढ़ मान्यताओं से मुक्त है सड़ी-गली विवेक की कसौटी पर कसने पर न केवल अप्रासंगिक अपितु हास्यास्पद प्रचलनों से बंधा नहीं है तो उसकी शक्ति इतनी है कि वह सारे समाज का-राष्ट्र मानव-निर्माण ही नहीं, उसका सशक्त मार्गदर्शन कर सकता है । समय की इसी आवश्यकता को देखते हुए परमपूज्य गुरुदेव ने धर्मतंत्र से लोकशिक्षण की प्रक्रिया को जो ऋषियुग-में वेद कालीन समाज में प्रचलित थी, पुनर्जीवित किया । प्रस्तुत खण्ड इसी धर्मतंत्र के विभिन्न पक्षों का विवेचन कर हमारी संस्कृति के मूल स्तम्भ, पर्व-त्योहारों, विराट जन सम्मेलन-कुंभ मेलों आदि के माहात्म्य पक्ष तथा इनके द्वारा जनसमुदाय का प्रगतिशील मार्गदर्शन पूज्यवर ने प्रस्तुत किया है ।
यही नहीं पूर्वकाल की साधु ब्राह्मण परम्परा जिसमें धर्मचक्र प्रवर्त्तन हेतु परिव्राजकों, समाज के निर्माण हेतु सतत परिभ्रमण करते रहते थे, की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उनने इसे नव संन्यास की प्रक्रिया कहा है । आज के युग की इस आवश्यकता परम पूज्यवर ने अत्यधिक जोर देते हुए प्रबुद्ध वर्ग से धर्मतंत्र का मार्गदर्शन सँभालने का आह्वान किया है । अपने बच्चों-नाती-पोतों के मोह में डूबे, आयुष्य की परिपक्वावस्था में पहुँचे लोगों से उनने पुत्रेषणा का परित्याग कर वानप्रस्थ अपनाने का आह्वान भी किया है । उनकी इसी मार्मिक पुकार ने लाखों युग पुरोहित विनिर्मित कर दिए ।
Table of content
अध्याय-१
धर्मतंत्र से लोकशिक्षण
अध्याय-२
धर्मतंत्र की गरिमा और क्षमता
अध्याय-३
हमारी संस्कृति के स्तंभ
अध्याय-४
पर्व और त्यौहार -प्रकरण
अध्याय-५
लोक जागरण के लिए जन-सम्मेलन
अध्याय-६
धर्मचक्र -प्रवर्तन -परिव्रज्या का पुनर्जागरण
अध्याय-७
देव संस्कृति का मेरुदण्ड वानप्रस्थ
अध्याय-८
विवेक सम्मत दान एक पुण्य प्रक्रिया
अध्याय-९
यज्ञोपवीत संस्कार
अध्याय-१०
विवाह संस्कार
अध्याय-११
वानप्रस्थ संस्कार
अध्याय-१२
अनत्वेष्टि संस्कार
अध्याय-१३
मरणोत्तर संस्कार
अध्याय-१४
जन्मदिवसोत्सव संस्कार
अध्याय-१५
विवाह दिवसोत्सव -संस्कार
अध्याय-१६
युग संस्कार-पद्धति
Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Publication |
Akhand Jyoti Santahan, Mathura |
Publisher |
Janjagran Press, Mathura |
Dimensions |
20 cm x 27 cm |