Preface
उदारता और महानता की प्रतिमूर्ति- महारानी अहिल्याबाई
उज्ज्वल मन और उन्नत आत्मा की चमक मनुष्य के व्यक्तित्व से अवश्य परिलक्षित होती है, जिसको बुद्धिमान् व्यक्ति एक झलक से ही परख लेते है ।। इसीलिए मुख को अतर का दर्पण कहा गया है।
इसी प्रकार के अपने आलोकित व्यक्तित्व और गुण -गरिमा के कारण अहिल्याबाई एक दिन इंदौर की महारानी बनी ।। " महारानी बनकर भी अहिल्याबाई ने सेवा, सौम्यता, सरलता और सादगी की अपनी विशेषताओं का परित्याग नहीं किया। स्थिति अथवा अवस्था के बदल जाने पर, जो व्यक्ति अपनी उन्नति के आधारों का त्याग कर देता है, अंतत: उसे पतन के गर्त में होता है। अतएव बुद्धिमान व्यक्ति अपने उन गुणों को, प्रतिकूल परिस्थितियों से में भी नहीं छोड़ते और बड़े से बड़ा चुका कर, दृढ़ता, धैर्य और साहस के साथ उनकी रक्षा करते है।
अहिल्याबाई का जन्म १७३५ से महाराष्ट्र के पाथडरी नामक एक छोटे से पाँव से हुआ था ।। उनकं पिता का नाम मनकोजी सिंधिया था ।। मनकोजी एक सामान्य व्यक्ति ही नहीं बल्कि गरीब आदमी थे। थोड़ी सी भूमि दो बैल और एक हल के बल पर उनकी नौका एक तरह से में चली जा रही थी। मनकोजी सच्चाई के साथ पूरा परिश्रम करते थे। जो कुछ पैदा हो जाता भी उसी में संतोषपूर्वक अपनी गुजर−बसर करते हुए प्रसन्न रहा करते थे। नित्य- प्रति भगवान् की -अर्चा करना उनके जीवन का एक अंग था ।। इसी उपासना की दिनचर्या ने उनको और उनके परिवार को संसार के सारे विकारों और माया- मोहों से बचाए रखा। छोर ग़रीबी से उनकी पवित्र जीवनधारा प्रसन्नतापूर्वक बही चली जा रही भी ।।
Table of content
1. महारानी अहिल्या देवी
2. उदारता और महानता की प्रतिमूर्ति - महारानी अहिल्याबाई
Author |
pt. shri ram sharma acharya |
Edition |
2014 |
Publication |
yug nirman yojana vistar trust |
ISBN |
cxvb |
Publisher |
yug nirman Press, Mathura |
Page Length |
32 |
Dimensions |
121X181X3 mm |