Preface
यों मनुष्य के पास प्रत्यक्ष सामर्थ्यों की कमी नहीं है और उनका सदुपयोग करके वह अपने तथा दूसरों के लिए बहुत कुछ करता है, किन्तु उसकी असीम सामर्थ्य को देखना हो तो मानवी चेतना के अन्तराल में प्रवेश करना होगा ।। व्यक्ति की महिमा को बाहर भी देखा जा सकता है पर गरिमा का पता लगाना हो तो अन्तरंग ही टटोलना पड़ेगा ।। इस अन्तरंग को समझने उसे परिष्कृत एवं समर्थ बनाने, जागृत अन्तःसमता का सदुपयोग कर सकने के विज्ञान को ही ब्रह्मविद्या कहते हैं ।। ब्रह्मविद्या के कलेवर का बीज- सूत्र गायत्री को समझा जा सकता है ।। प्रकारान्तर से गायत्री को मानवी गरिमा के अन्तराल में प्रवेश पा सकने वाली और वहाँ जो रहस्यमय है उसे प्रत्यक्ष में उखाड़ लाने की सामर्थ्य को गायत्री कह सकते हैं ।। नवयुग के सृजन में सर्वोपरि उपयोग इसी दिव्य शक्ति का होगा ।। मनुष्य की बहिरंग सत्ता को भी कई तरह की सामर्थ्य प्राप्त है पर वे सभी सीमित होती हैं और अस्थिर भी ।। सामान्यतया सम्पत्ति, बलिष्ठता शिक्षा, प्रतिभा, पदवी अधिकार जैसे साधन ही वैभव में गिने जाते हैं और इन्हीं के सहारे कई तरह की सफलताएँ भी सम्पादित की जाती हैं ।। इतने पर भी इनका परिणाम सीमित ही रहता है और इसके सहारे व्यक्तिगत वैभव सीमित मात्रा में ही उपलब्ध किया जा सकता है ।। भौतिक सफलताएँ मात्र अपने पुरुषार्थ और साधनों के सहारे ही नहीं मिल जाती वरन् उनके लिए दूसरों की सहायता और परिस्थितियों की अनुकूलता पर भी निर्भर रहना पड़ता है ।।
Table of content
1 युग शक्ति के रूप में गायत्री चेतना का अरुणोदय -
2 वेदमाता-देवमाता-विश्वमाता-
3 नवयुग का आगमन और प्रज्ञावतार -
4 युग परिवर्तन के उपयुक्त वातावरण बनाना होगा -
5 गायत्री महाशक्ति से नवयुग की संरचना –
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2009 |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
48 |
Dimensions |
180mmX122mmX4mm |