Preface
जीवन में सफलता पाने के जितने साधन बतलाए गए हैं, उनमें विद्वानों ने सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है। जो मनुष्य इन सात साधनों का समावेश कर लेता है, वह किसी भी स्थिति का क्यों न हो, अपनी वांछित सफलता का अवश्य वरण कर लेता है। वे सात साधन हैं–परिश्रम एवं पुरुषार्थ, आत्म विश्वास एवं आत्मनिर्भरता, त्याग एवं बलिदान, साहस एवं निर्भयता, स्नेह एवं सहानुभूति, जिज्ञासा एवं लगन, प्रसन्नता एवं मानसिक संतुलन।
जब तक जीवन में अनुभव जन्य ज्ञान की कमी है, तब तक मनुष्य स्वप्नों के मनोरम लोक में विहार करता रहता है परन्तु जैसे- जैसे उसे संसार की बाधाओं का ज्ञान होता है, वैसे- वैसे उसे प्रतीत होता है कि कल्पनाओं और योजनाओं का जो रूप उसने प्रारम्भ में अपने नेत्रों में देखा था, वास्तव में वह वैसा नहीं है। वास्तविक रूप अज्ञान के अनुभव को ही कहते हैं। अनुभव कर्म से ही प्राप्त होता है। कर्म के साथ ही जीवन में सफलता जुड़ी रहती है। पृ०३२/२
पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें:
वेद भगवान का कथन है –
"कृत मे दक्षिणे हस्ते, जयो मे सव्य आहित:। गोजिद् भूयासमश्वजिद् धनंजवो हिरण्यजित:।।"
हे! मनुष्य तू अपने दाहिने हाथ से पुरुषार्थ कर बायें में सफलता निश्चित है। गोधन, अश्वधन,स्वर्ण आदि को तू स्वयं अपने परिश्रम से प्राप्त कर।
Table of content
• सफलता के सात सूत्र साधन
• सफलता के लिए क्या करें ? क्या न करें ?
• सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
• सतत कर्मशील रहें
• सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
• अपने जन्मसिद्ध अधिकार -सफलता का वरण कीजिए
Author |
pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
56 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |