Preface
गायत्री महामंत्र की साधना व्यक्ति के जीवन में क्या कुछ नहीं देती, यह सारा प्रसंग बहुविदित है ।। विधिपूर्वक की गई साधना निश्चित ही फलदायी होती है एवं उसके सत्परिणाम साधक को शीघ्र ही अपने आत्मिक- लौकिक दोनों ही क्षेत्रों में दिखाई देने लगते हैं ।। फिर भी इस छोटे से धर्मशास्त्ररूपी सूत्र में इतना कुछ रहस्य भरा पड़ा है, जिसे यदि परत दर परत खोला जा सके तो व्यक्ति अपने जीवन को धन्य बना सकता है ।। गायत्री भारतीय संस्कृति का प्राण है, परमात्मसत्ता द्वारा धरती पर भेजा गया वह वरदान है, जिसका यदि मनुष्य सदुपयोग कर सके तो वह अपना धरित्री पर अवतरण सार्थक बना सकता है ।।
परमपूज्य गुरुदेव जानते थे कि गायत्री- साधना में प्रवृत्त रहने के बाद जनसामान्य में और अधिक जानने की और अधिक गहराई में प्रवेश करने की उत्सुकता भी बढ़ेगी ।। इसी को दृष्टिगत रख उनने उसका, जितना एक सामान्य गायत्री- साधक को जानना चाहिए व जीवन में उतारना चाहिए, मार्गदर्शन गायत्री महाविज्ञान के अपने तीनों खंडों में कह दिया ।। इसी प्रसंग में कुछ गुह्य पक्षों की चर्चा वाङ्मय के इस खंड में की गई है ।।
गायत्री के चौबीस अक्षर वास्तविकता में चौबीस शक्तिबीज हैं ।। सांख्य दर्शन में वर्णित उन चौबीस तत्त्वों का जो पंच तत्वों के अतिरिक्त हैं, गुंफन करते हुए ऋषिगणों ने गायत्री महामंत्ररूपी सूक्ष्म आध्यात्मिक शक्ति को प्रकट कर जन- जन के समक्ष रखा ।। चौबीस मातृकाओं की महाशक्तियों के प्रतीक ये चौबीस अक्षर इस वैज्ञानिकता के साथ एक साथ छंदबद्ध- गुंथित कर दिए गए हैं कि इस महामंत्र के उच्चारण मात्र से अनेकानेक अंदर की प्रसुप्त शक्तियों जाग्रत होती हैं ।।
Table of content
1. आस्तिकता आवश्यक ही नहीं,अनिवार्य भी
2. आस्तिकता की उपयोगिता और आवश्यकता
3. हम सच्चे अर्थों में आस्तिक बनें
4. उपासना अर्थात् ईश्वर के निकट बैठना
5. ईश्वर-विश्वास क्यों ? किसलिए ?
6. ईश्वर कौन है? कहाँ है ? कैसा है ?
7. विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व
8. ईश्वर प्राप्ति का सच्चा मार्ग
9. ईश्वर और उसकी अनुभूति
10. भक्ति योग का व्यावहारिक स्वरूप
11. प्रेम ही परमेश्वर है
Author |
Brahmvarchasva |
Publication |
Akhand Jyoti Santahan, Mathura |
Publisher |
Janjagran Press, Mathura |
Dimensions |
205X273X25 mm |