Preface
एक जन भ्रान्ति यह सदा से रही है कि विज्ञान और अध्यात्म परस्पर विरोधी हैं ।। दोनों में कुत्ते- बिल्ली जैसा बैर है एवं इनका परस्पर सहकार तो दूर, मिलना कतई सम्भव नहीं ।। तार्किकों का कहना है कि मनुष्य की प्रगति जो आज इस रूप में दिखाई देती है, उसका मूल कारण विज्ञान का उद्भव व विकास है ।। धर्म या अध्यात्म तो एक अफीम की गोली मात्र है जो प्रगति के स्थान पर अवगति की ओर ले जाकर व्यक्ति को अकर्मण्य बनाती है ।। परमपूज्य गुरुदेव इस तर्क से सहमत न हो वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की वकालत करते हुए कहते हैं कि यह नितान्त असत्य है कि पदार्थ विज्ञान और अध्यात्म दोनों एक- दूसरे के विरोधी हैं ।। पूज्यवर के अनुसार अध्यात्म एक उच्चस्तरीय विज्ञान है ।। यदि दृष्टिकोण परिष्कृत कर अध्यात्म और विज्ञान को उस नजरिये से देखा जा सके तो ज्ञात होगा कि ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ।। दोनों एक- दूसरे के पूरक हैं ।। दोनों एक- दूसरे के बिना रह नहीं सकते तथा दोनों के पारस्परिक अन्योन्याश्रित सहयोग पर ही इस धरित्री का भविष्य टिका हुआ है ।।
अपने इस प्रतिपादन की पुष्टि में पूज्यवर ने अनेकानेक तर्क दिए हैं ।। उनने ब्रह्माण्ड की सुव्यवस्था, स्रष्टि के अविज्ञात रहस्यों, पृथ्वी से परे अन्तर्ग्रही जीवन, ज्योतिर्विज्ञान आदि से जुड़े विभिन्न तथ्यों पर गहराई से प्रकाश डालते हुए यह प्रतिपादित किया है कि यह सब जो भी कुछ हमें स्रष्टि चक्र के रूप में दिखाई देता है, वह सब सुव्यवस्थित है एवं प्रमाणित करता है कि इन सबके मूल में कोई सत्ता कार्य कर रही है जो हमें भले ही दिखाई न दे किन्तु उसके ही कारण जीवन स्पन्दित होता है, यह विज्ञान भी अब मान रहा है ।।
Table of content
1. ब्रह्माण्ड न तो अनगढ़ है, न बेतुका
2. सृष्टि के अविज्ञात रहस्य
3. अन्तर्ग्रही देवमानवों का धरती पर आगमन
4. आत्मिकी की एक सर्वांगपूर्ण शाखा ज्योतिर्विज्ञान
5. विज्ञान एवं अध्यात्म का समन्वय आज की सर्वोपरि आवश्यकता
6. अध्यात्म विज्ञान की ब्रह्मवर्चस शोध प्रक्रिया
Author |
Brahmavarchasv |
Publication |
Akhand Jyoti Santahan, Mathura |
Publisher |
Janjagran Press, Mathura |
Dimensions |
205X275X27 mm |