Preface
साधना से सिद्ध प्राप्त होती है, साधक अनेकानेक विभूतियों को प्राप्त करता है, यह तथ्य जहाँ सही है, वहाँ यह भी साधना के पीछे उद्देश्य क्या था, साधक ने सही अर्थों में साधना के मर्म को जीवन में उतारा या नहीं एवं वस्तुत: स्वयं को साध सकने में वह सफल हुआ या नहीं। ‘साधना से सिद्धि’ अकाट्य तथ्य को परमपूज्य गुरुदेव ने अपनी अंत: तक उतर जाने वाली शैली में समझाते हुए साधना का तात्त्विक पृष्ठभूमि को समझाया है। अंत:करण की परिष्कृति जब तक संभव नहीं हो पाती व्यक्ति अपने ऊपर अपने विचारों- अपने मनोभावों पर जब तक नियंत्रण स्थापित नहीं कर लेता तब तक उसे सिद्धि नहीं मिल सकती। सिद्धि मिलती भी है तो पहले व्यक्तित्व के परिष्कार, चुम्बकीय आकर्षण तथा औरों के लिए कुछ कर गुजरने की प्रवृत्ति के विकास के रूप में।
Table of content
1. साधना से सिद्धि की तात्विक पृष्ठभूमि
2. साधना का स्वरूप और विज्ञान
3. साधना-सिद्ध एवं वातावरण
4. योग के नाम पर मायाचार या जादूगरी
Author |
Brahmvarchasva |
Publication |
Akhand Jyoti Santahan, Mathura |
Publisher |
Janjagran Press, Mathura |
Page Length |
422 |
Dimensions |
205X273X3 mm |