Preface
शब्द शक्ति से ही इस सृष्टि की उत्पत्ति हुई, ऐसा कहा जाता है ।। गायत्री महामंत्र प्रणव नाद से प्रकट व इस धरती की विश्व ब्रह्माण्ड की अनादि कालीन सर्वप्रथम ऋचा है जिससे वेदों की उत्पत्ति हुई, ऐसा कहा जाता है ।। गायत्री महामंत्र का ज्ञान- विज्ञान वाला पक्ष इतना अधिक महत्त्वपूर्ण है कि उसे भली प्रकार समझे बिना यह नहीं जाना जा सकता कि इस साधना के लाभ किसी को क्यों व कैसे मिलते हैं ।। मंत्र तो अनेकानेक हैं ।। अनेक मत- सम्प्रदायों में भी ढेरों मंत्र ऐसे मिलते हैं जिनका जप करने का विधान बताया गया है एवं उनके माहात्म्य से समग्र धर्म शास्त्र भरे पड़े हैं ।। किन्तु छन्दों में मंत्र गायत्री छन्द के रूप में, मंत्र शक्ति के रूप में परमात्मा की सत्ता विद्यमान है, यह गीताकार ने "गायत्री छन्दसामहम्" के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है ।। इस मंत्र की विलक्षणता के पीछे वैज्ञानिक आधार क्या है, यह परमपूज्य गुरुदेव के वाड्मय के इस खण्ड को पढ़कर समझा जा सकता है ।।
यों तो गायत्री में असंख्यों शक्तियाँ, दैवी स्फुरणाएँ हैं किन्तु इसकी श्रेष्ठता का मूल आधार मंत्र विज्ञान के आधार पर इसका सर्वश्रेष्ठ होना है ।। इस मंत्र का अरबों- खरबों बार इस धरती पर उच्चारण हो चुका है ।। इसके कम्पन अभी भी सूक्ष्म जगत में विद्यमान हैं ।। मात्र इसका सविता के ध्यान के साथ भाव विह्वल होकर जप करने से वे सारे "वाइब्रेशन्स" सूक्ष्म जगत के कम्पन आकर व्यक्ति के प्रभामंडल को घेर लेते हैं एवं उसकी अनगढ़ताओं को मिटाकर उसे एक सुव्यवस्थित व्यक्ति बना देते हैं ।। गायत्री महामंत्र की संरचना में जिस प्रकार विभिन्न शक्ति बीजों को गुंफित किया गया है वह "साइंस आफ एकास्टिक्स" ध्वनि विज्ञान पर आधारित है ।।
Table of content
1. गायत्री की शक्ति और सिद्धि
2. गायत्री के दो पुण्य प्रतीक:शिखा और यज्ञोपवीत
3. गायत्री का वैज्ञानिक आधार
4. मन्त्र शक्ति की वैज्ञानिकता एवं उसकी संसिद्धि
5. गायत्री साधना सम्बन्धी शंका-समाधान
6. स्त्रियों की गायत्री साधना व अधिकार
7. गायत्री से विश्वव्यापी संकट का समाधान
8. सुमूहिक धर्मानुष्ठानों की अभूतपूर्व प्रक्रिया
9. गायत्री की युगारन्तकारी चेतना
10. देवत्व का अवतरण गायत्री के माध्यम से
Author |
Brahmvarchasva |
Publication |
Akhand Jyoti Santahan, Mathura |
Publisher |
Janjagran Press, Mathura |
Dimensions |
203X277X25 mm |